JJ Act | JJB द्वारा प्रारंभिक मूल्यांकन और रिपोर्ट के अभाव में किशोर आरोपी पर वयस्क के रूप में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आरोपी बच्चे की सजा, जो 'कानून का उल्लंघन करने वाला बच्चा' था, उसको तब तक बरकरार नहीं रखा जा सकता, जब तक कि अपराध करने के लिए बच्चे की शारीरिक और मानसिक क्षमता और कोशिश करने की आवश्यकता का प्रारंभिक मूल्यांकन न किया जाए। किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत बच्चे को वयस्क या किशोर के रूप में अनिवार्य आवश्यकताओं के रूप में पालन किया गया।
हाईकोर्ट के निष्कर्षों को पलटते हुए जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा कि JJ Act की धारा 19 के तहत आरोपी बच्चे पर वयस्क या किशोर के रूप में मुकदमा चलाने की आवश्यकता है या नहीं, इसका निर्णय केवल किशोर न्याय बोर्ड द्वारा किए गए प्रारंभिक मूल्यांकन के आधार पर किया जा सकता है। JJ Act की धारा 15 के तहत जो यह सुनिश्चित करता है कि क्या कोई बच्चा जो सोलह वर्ष की आयु पूरी कर चुका है या उससे अधिक उम्र का है, उसके द्वारा किए जाने वाले कथित जघन्य अपराध को करने की मानसिक और शारीरिक क्षमता है।
जस्टिस संदीप मेहता द्वारा लिखित निर्णय कहा,
“जैसा कि वर्तमान मामले के तथ्यों से देखा जा सकता है, JJ Act की धारा 15 और 19 की अनिवार्य आवश्यकताओं का घोर उल्लंघन हुआ। न तो आरोपी अपीलकर्ता के खिलाफ बोर्ड के समक्ष आरोप पत्र दायर किया गया और न ही धारा 15 के तहत कोई प्रारंभिक मूल्यांकन किया गया, जिससे यह पता लगाया जा सके कि आरोपी अपीलकर्ता पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने की आवश्यकता है या नहीं।''
वर्तमान मामले में पुलिस द्वारा आरोपी के खिलाफ, जो अपराध के समय किशोर था, JJ Act की धारा 15 और 19 की अनिवार्य आवश्यकताओं का पालन किए बिना ट्रायल कोर्ट के समक्ष आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराया और हाई कोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा।
हाईकोर्ट द्वारा पारित फैसले के खिलाफ आरोपी/अपीलकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि JJ Act की धारा 15 और 19 के अनिवार्य प्रावधान का घोर उल्लंघन हुआ। उसने तर्क दिया कि इस तथ्य को जानने के बावजूद कि अपराध के समय अपीलकर्ता सीआईसीएल है, पुलिस द्वारा ट्रायल कोर्ट के समक्ष आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया। उन्होंने जोर देकर कहा कि बच्चे पर JJ Act के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, जब तक कि यह सुनिश्चित करने के लिए प्रारंभिक मूल्यांकन पूरा नहीं हो जाता कि बच्चा इस तरह का अपराध करने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से फिट है, या नहीं।
अपीलकर्ता के तर्क में बल पाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जांच के चरण से लेकर मुकदमे की समाप्ति तक अपीलकर्ता के खिलाफ की गई पूरी कार्यवाही JJ Act की अनिवार्य आवश्यकताओं के घोर उल्लंघन के रूप में की गई।
अदालत ने ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोप पत्र की स्वीकृति के खिलाफ कहा,
"एक्ट की धारा 15 के तहत बोर्ड द्वारा किए जा रहे प्रारंभिक मूल्यांकन के अभाव में और धारा 18(3) के सपठित धारा 15(1) के तहत बोर्ड द्वारा कोई आदेश पारित किए बिना आरोप पत्र और आरोपी के मुकदमे को आगे बढ़ाने के लिए ट्रायल कोर्ट के लिए इसे स्वीकार करना अस्वीकार्य है।"
संक्षेप में अदालत ने माना कि अपराध के समय कानून का उल्लंघन करने वाले आरोपी पर, जो बच्चा था, मुकदमा ट्रायल कोर्ट द्वारा नहीं चलाया जा सकता, बल्कि केवल बाल न्यायालय द्वारा चलाया जा सकता है, जैसा कि JJ Act की धारा 19 के तहत अनिवार्य है। अदालत ने स्पष्ट किया कि जेजे बोर्ड की प्रारंभिक मूल्यांकन रिपोर्ट के बाद ही धारा 19 के तहत बाल न्यायालय आरोपी बच्चे पर मुकदमा चलाने के लिए पात्र होगा।
अदालत ने स्पष्ट किया,
"धारा 19(1) के आधार पर बाल न्यायालय धारा 15 के तहत बोर्ड द्वारा किए गए प्रारंभिक मूल्यांकन की ऐसी रिपोर्ट प्राप्त करने पर आगे निर्णय ले सकता है कि क्या बच्चे पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने की आवश्यकता है या नहीं।"
अजीत गुर्जर बनाम मध्य प्रदेश राज्य के अपने फैसले पर भरोसा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जघन्य अपराध करने के आरोपी बच्चे पर मुकदमा चलाते समय अदालत को एक्ट की धारा 15 और 19 के तहत प्रदान की गई प्रक्रिया का अनिवार्य रूप से पालन करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अंततः आक्षेपित निर्णय रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि अपीलकर्ता जो वर्तमान में जेल में बंद है, यदि किसी अन्य मामले में आवश्यक नहीं है तो उसे तुरंत रिहा कर दिया जाएगा।
तदनुसार अपील की अनुमति दी गई।
केस टाइटल: थिरुमूर्ति बनाम राज्य, जिसका प्रतिनिधित्व पुलिस निरीक्षक द्वारा किया गया