अब समय आ गया है कि मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए: द वायर मामले में सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 22 सितंबर को फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज़्म (ऑनलाइन पोर्टल द वायर का संचालन करता है) और इसके डिप्टी एडिटर अजोय आशिर्वाद महाप्रस्था की याचिकाओं पर नोटिस जारी किया। याचिकाएं उस आपराधिक मानहानि मामले से संबंधित हैं, जिसे JNU की पूर्व प्रोफेसर अमिता सिंह ने दायर किया था। इस याचिका के तहत ट्रायल कोर्ट ने द वायर के संपादकों को तलब किया था।
यह मामला 2016 में प्रकाशित द वायर की एक रिपोर्ट से जुड़ा है, जिसका टाइटल डॉसियर कॉल्स JNU Den of Organised Sex Racket Students, Professors Allege Hate Campaign था। अमिता सिंह का आरोप है कि इस लेख से यह संकेत दिया गया कि उन्होंने एक डॉसियर तैयार किया, जिसमें JNU को ऑर्गनाइज़्ड सेक्स रैकेट का अड्डा बताया गया। उनका कहना है कि बिना सत्यापन के इस दस्तावेज़ का हवाला देकर पोर्टल ने उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई और व्यावसायिक लाभ उठाने का प्रयास किया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलीलें रखीं।
सुनवाई के दौरान जस्टिस एम.एम.सुंदरश ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा,
“मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि इन सभी मामलों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया जाए।"
जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा भी पीठ में शामिल थे।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2023 में इस मामले में जारी तलब आदेश रद्द कर दिया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए मामले को मजिस्ट्रेट के पास पुनर्विचार के लिए भेजा। इसके बाद जारी हुआ दूसरा समन इस समय सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के अधीन है। मई, 2025 में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी याचिकाकर्ताओं की चुनौती खारिज कर दी थी।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि भारतीय न्याय संहिता (BNSS) के अनुसार उन्हें संज्ञान लेने से पहले धारा 223 के तहत सुना जाना चाहिए था। हालांकि, हाईकोर्ट ने यह कहते हुए इस दलील को खारिज कर दिया कि चूंकि शिकायत 2016 में दर्ज हुई थी, इसलिए नए प्रावधान लागू नहीं होंगे।
यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और अदालत ने केंद्र व अन्य पक्षकारों से जवाब मांगा है।