सुप्रीम कोर्ट ने TISS के दलित स्कॉलर को राहत दी, PhD जारी रखने की अनुमति दी
सुप्रीम कोर्ट ने टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (TISS) को निर्देश दिया कि वह दलित पीएचडी स्कॉलर और वामपंथी छात्र नेता रामदास के.एस. को संस्थान में पुनः बहाल (re-instate) करे, जिन्हें पहले दुर्व्यवहार और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के आरोप में निलंबित कर दिया गया था।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने निलंबन रद्द नहीं किया लेकिन यह निर्देश दिया कि निलंबन की अवधि केवल अब तक भुगती गई अवधि तक सीमित रहेगी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि रामदास को अपनी पीएचडी पूरी करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
मामला
अप्रैल 2024 में TISS ने रामदास को दो वर्षों के लिए निलंबित कर दिया और सभी परिसरों में प्रवेश पर रोक लगा दी। यह कार्रवाई तब की गई जब रामदास ने जनवरी, 2024 में केंद्र सरकार और भाजपा के खिलाफ तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के विरोध में 'संसद मार्च' में भाग लिया था। यह प्रदर्शन TISS-PSF (प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फोरम) के बैनर तले हुआ था।
रामदास ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती दी, जिसने उनके निलंबन को बरकरार रखा था। हाईकोर्ट ने यह माना कि विरोध मार्च राजनीतिक रूप से प्रेरित था और TISS इस निष्कर्ष पर सही था कि रामदास ने यह धारणा उत्पन्न की कि प्रदर्शन में व्यक्त विचार संस्थान के विचार हैं, जिससे संस्थान की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा।
रामदास ने 2015 में TISS में मास्टर्स कोर्स (मीडिया और सांस्कृतिक अध्ययन) में दाखिला लिया था और उन्हें स्कॉलरशिप भी दी गई। 2018 में उन्होंने विकास अध्ययन में एकीकृत एम.फिल. और पीएचडी पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया। 2023 में उन्हें UGC-NET परीक्षा में प्रदर्शन के आधार पर भारत सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय द्वारा अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप प्रदान की गई।
टाइटल: रामदास के.एस. बनाम टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान | डायरी संख्या - 21360/2025