छत्तीसगढ़ शराब घोटाला: तीखी बहस के बाद जस्टिस ओक की बेंच ने राज्य का मामला दूसरी बेंच को सौंपने की अनुमति दी

Update: 2025-05-05 06:15 GMT

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने शुक्रवार को पूर्व IAS अधिकारी अनिल टुटेजा और दो अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया, जिसमें छत्तीसगढ़ शराब घोटाले से संबंधित उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले को रद्द करने की मांग की गई थी।

बेंच ने यह फैसला छत्तीसगढ़ राज्य के सीनियर एडवोकेट महेश जेठमलानी के साथ तीखी बहस के बाद लिया, जिन्होंने स्थगन का विरोध किया और टुटेजा और अन्य को गिरफ्तारी से संरक्षण देने वाला अंतरिम आदेश रद्द करने की मांग की।

कोर्ट ने कहा,

"जेठमलानी द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्कों पर विचार करते हुए हम जेठमलानी को इन मामलों को उचित बेंच को सौंपने के लिए चीफ जस्टिस की अदालत में जाने की अनुमति देते हैं।"

टुटेजा ने दो अन्य आरोपियों विधु गुप्ता और नितेश पुरोहित के साथ मिलकर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PC Act) के तहत उनके खिलाफ दर्ज मामलों को रद्द करने की मांग करते हुए वर्तमान याचिका दायर की।

न्यायालय ने इससे पहले याचिकाकर्ताओं को अंतरिम संरक्षण प्रदान किया, जिसमें जांच में उनके सहयोग को ध्यान में रखा गया।

शुक्रवार को न्यायालय ने गुप्ता और पुरोहित को अंतरिम राहत देने की मांग करने वाले छत्तीसगढ़ राज्य के अंतरिम आवेदनों की सुनवाई के लिए विशेष रूप से मामले को रखा।

सुनवाई के दौरान जेठमलानी ने अंतरिम आदेश को हटाने की मांग की, जिसमें तर्क दिया गया कि जांच के लिए याचिकाकर्ताओं से हिरासत में पूछताछ आवश्यक है। हालांकि जस्टिस ओका ने जेठमलानी के अनुरोध की तात्कालिकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि निरस्तीकरण याचिकाएं अभी भी लंबित हैं। उन्होंने अंतरिम आदेश को हटाने की आवश्यकता पर सवाल उठाया जब याचिकाकर्ता सुनवाई में भाग ले रहे थे और जांच में सहयोग कर रहे थे।

जेठमलानी ने जवाब में जोर देकर कहा कि हिरासत में पूछताछ पर फैसला करना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

उन्होंने कहा,

"हमें उनकी हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता है। यह न्यायालय का अधिकार क्षेत्र नहीं है।"

जस्टिस ओक ने पूछा,

"क्या हम राहत देने में असमर्थ हैं?"

जेठमलानी ने जवाब दिया,

“हां, मैं पूरी गंभीरता से यह कह रहा हूं।”

जस्टिस ओक ने सुझाव दिया कि अगर जेठमलानी यह तर्क देना चाहते हैं कि न्यायालय के पास अंतरिम राहत देने का अधिकार नहीं है तो गर्मी की छुट्टियों से पहले गैर-विविध दिन पर रखा जाना चाहिए।

जेठमलानी ने जोर देकर कहा कि मामला सितंबर, 2024 से लंबित है और अंतरिम आदेश को हटाने के लिए उनके द्वारा दायर किए गए आवेदन के बाद विशेष रूप से सुनवाई के लिए तय किया गया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं के वकीलों द्वारा स्थगन की मांग के कारण मामला कई बार स्थगित हो चुका है। उन्होंने आगे कहा कि जब भी उन्होंने स्थगन की मांग की। उन्होंने ऐसा पहले ही कर लिया।

याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने जेठमलानी की दलीलों का खंडन किया। खंडपीठ को बताया कि यह राज्य ही था, जिसने मामले में तीन बार स्थगन लिया था। कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि यह राज्य की ओर से अनुचित दलील है, जिसने खुद अपने लिए असुविधाजनक तारीखों पर स्थगन लिया था।

जस्टिस ओक ने सुझाव दिया कि जेठमलानी को मामले को किसी अन्य पीठ को सौंपने के लिए चीफ जस्टिस से संपर्क करना चाहिए, यदि उनकी शिकायत यह है कि मामले तय तिथि पर नहीं पहुंच रहे हैं।

जस्टिस ओक ने कहा,

मिस्टर जेठमलानी, हम आपको बता रहे हैं यदि यह शिकायत है तो हम आपको इस याचिका को ट्रांसफर करने के लिए चीफ जस्टिस से संपर्क करने की अनुमति देंगे। हम इतने सारे मामलों की सुनवाई कर रहे हैं। यदि आप शिकायत कर रहे हैं कि मामले नहीं पहुंच रहे हैं।

यद्यपि जेठमलानी ने स्पष्ट किया कि उनका तर्क न्यायालय के विरुद्ध नहीं है बल्कि स्थगन की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं के आचरण के बारे में था। लेकिन खंडपीठ ने अपना विचार नहीं बदला और मामले से खुद को अलग कर लिया।

जस्टिस ओक ने इस दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए कहा कि यदि स्थगन के बारे में ऐसी शिकायतें हर मामले में उठाई जाती हैं तो न्यायालय के लिए काम करना असंभव हो जाएगा।

जस्टिस ओक ने कहा,

"मिस्टर जेठमलानी, यदि हम यह दृष्टिकोण अपनाना शुरू कर दें तो किस वकील ने कितनी बार स्थगन लिया है। हमारे लिए काम करना असंभव हो जाएगा।"

केस टाइटल- अनिल टुटेजा बनाम भारत संघ और इससे जुड़े मामले

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