'तर्क के अभाव में निर्णय बरकरार नहीं रखा जा सकता': सुप्रीम कोर्ट ने मामले को नए सिरे से तय करने के लिए हाईकोर्ट को वापस भेजा

Update: 2024-09-03 07:21 GMT

यह देखते हुए कि तर्क के अभाव में कोई भी निर्णय कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं हो सकता, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के आदेश को खारिज कर दिया, जो बिना कोई कारण बताए लापरवाही से दिया गया था।

वर्तमान मामले में एकल न्यायाधीश का निर्णय बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त नहीं किया। इसके बजाय यह निष्कर्ष निकाला कि डिवीजन बेंच विद्वान एकल न्यायाधीश के दृष्टिकोण और दृष्टिकोण से सहमत थी, बिना कोई कारण बताए।

गरिमा प्रसाद, सीनियर एडवोकेट, उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि खंडपीठ ने बिना कोई कारण बताए एकल पीठ का निर्णय बरकरार रखने में तथा अपीलकर्ताओं द्वारा जारी सरकारी आदेशों और परिपत्रों पर विचार न करने में त्रुटि की है, जिन्हें अपीलकर्ताओं/उत्तर प्रदेश राज्य को सुनवाई का उचित अवसर प्रदान करते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए था।

सीसीटी बनाम शुक्ला एंड ब्रदर्स (2010) के निर्णय से संकेत लेते हुए जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा कि विवादित निर्णय में किसी तर्क के अभाव में इसे कायम नहीं रखा जा सकता।

उद्धृत मामले में न्यायालय ने तर्कपूर्ण निर्णय के महत्व को रेखांकित किया तथा बताया कि यह न्यायिक कार्यवाही में जनता के विश्वास को कैसे कम कर सकता है।

न्यायालय ने सीसीटी बनाम शुक्ला एंड ब्रदर्स में टिप्पणी की,

“सभी न्यायालयों में अपनाई गई प्रथा तथा जज द्वारा बनाए गए कानून के आधार पर तर्कपूर्ण निर्णय की अवधारणा कानून के बुनियादी नियम का अनिवार्य हिस्सा बन गई। वास्तव में प्रक्रियात्मक कानून की अनिवार्य आवश्यकता है। विचारों की स्पष्टता से दृष्टि की स्पष्टता आती है। उचित तर्क न्यायपूर्ण और निष्पक्ष निर्णय का आधार है। तर्क न्याय प्रशासन के लिए वास्तविक जीवंत कड़ी हैं। सम्मान के साथ हम इस दृष्टिकोण में योगदान देंगे। एक तर्कपूर्ण निर्णय के पीछे एक तर्क, युक्ति और उद्देश्य होता है। तर्कपूर्ण निर्णय मुख्य रूप से अपने विचारों को स्पष्ट करने, संबंधित को निर्णय के कारणों को बताने और यह सुनिश्चित करने के लिए लिखा जाता है कि ऐसे कारणों पर अपीलीय/हाईकोर्ट द्वारा उचित रूप से विचार किया जा सके। इस प्रकार कारणों की अनुपस्थिति से ऊपर बताए गए उद्देश्य को ही विफल कर दिया जाएगा।"

उपर्युक्त को देखते हुए मामला वापस डिवीजन बेंच को वापस भेजने का निर्देश दिया गया, जिससे पक्षकार उपस्थित हों और नए सिरे से तर्क प्रस्तुत करें।

न्यायालय ने कहा,

“पक्षकारों को मामले में बाद के घटनाक्रमों को रिकॉर्ड पर रखने की स्वतंत्रता दी जाती है, जिससे डिवीजन बेंच को मामले में व्यापक परिप्रेक्ष्य से अवगत कराया जा सके। मामले में वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण अपनाया जा सके। दोनों पक्षों को कानून के साथ-साथ तथ्यों पर नए सिरे से बहस करने की स्वतंत्रता दी जाती है, इसके अलावा एकल जज द्वारा पारित सामान्य निर्णय के आलोक में खंडपीठ के समक्ष उठाए गए मुद्दों के अलावा बाद के घटनाक्रमों का भी उल्लेख किया जा सकता है।"

तदनुसार, आरोपित निर्णय रद्द कर दिया जाता है और अलग रखा जाता है तथा अपीलकर्ता द्वारा हाईकोर्ट में दायर अपील को उसकी मूल स्थिति में बहाल किया जाता है।

केस टाइटल: राज्य परियोजना निदेशक, यूपी एजुकेशन फॉर ऑल परियोजना बोर्ड व अन्य बनाम सरोज मौर्य व अन्य, सिविल अपील संख्या 3465 वर्ष 2023

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