क्या अनुच्छेद 227 के तहत पारित एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ लेटर्स पेटेंट अपील स्वीकार्य है? सुप्रीम कोर्ट करेगा जांच
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की खंडपीठ के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका में अनुमति प्रदान की, जिसने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पर्यवेक्षी शक्तियों का प्रयोग करते हुए एकल पीठ के निर्णय में हस्तक्षेप किया था।
न्यायालय के विचारण के लिए जो प्रश्न आया, वह यह है कि क्या खंडपीठ के पास संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पर्यवेक्षी अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में पारित एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने का वैध अधिकार है।
वर्तमान मामला प्रतिवादी/शिक्षक की बर्खास्तगी से संबंधित है, जहां हाईकोर्ट की एकल पीठ ने अनुच्छेद 227 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए गुजरात संबद्ध महाविद्यालय सेवा न्यायाधिकरण अधिनियम, 1983 (न्यायाधिकरण अधिनियम) के तहत स्थापित न्यायाधिकरण का आदेश रद्द कर दिया और प्रतिवादी की बर्खास्तगी बरकरार रखी।
एकल न्यायाधीश ने माना कि अध्यादेश 69बी एक विशेष कानून होने के कारण न्यायाधिकरण अधिनियम के प्रावधानों पर प्रभावी होगा, जो सामान्य कानून है। इसलिए समाप्ति को चुनौती देने के लिए उपयुक्त मंच अध्यादेश 69बी के तहत उल्लिखित विश्वविद्यालय होगा, लेकिन न्यायाधिकरण नहीं।
एकल पीठ के आदेश को प्रतिवादी ने अनुच्छेद 227 के तहत खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी थी। खंडपीठ ने हस्तक्षेप किया और एकल पीठ के निष्कर्षों को उलट दिया।
इसके बाद अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ उपरोक्त प्रश्नों की जांच करेगी।
उल्लेखनीय है कि पहले न्यायालय ने प्रथम दृष्टया यह विचार व्यक्त किया कि संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पारित एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ लेटर्स पेटेंट अपील (एलपीए) पर विचार करने के लिए खंडपीठ के अधिकार क्षेत्र के मुद्दे को एलआईसी बनाम नंदिनी जे. शाह ने (2018) 15 एससीसी 356 में रिपोर्ट के निर्णय द्वारा कवर किया गया।
नंदिनी जे. शाह के मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पारित एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा एलपीए पर विचार करना अस्वीकार्य है।
न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 227 के तहत पारित एकल पीठ के आदेश के खिलाफ दायर लेटर पेटेंट अपीलें बनाए रखने योग्य नहीं होंगी।
इसके अलावा, नंदिनी जे. शाह के मामले में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सिविल कोर्ट द्वारा पारित आदेश केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में हाईकोर्ट की जांच के लिए उत्तरदायी है, जो संविधान के अनुच्छेद 226 से अलग है और सिविल कोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ कोई रिट जारी नहीं की जा सकती। इसलिए कोई लेटर पेटेंट अपील बनाए रखने योग्य नहीं होगी।
केस टाइटल: एस एडी विद्या मंडल और अन्य बनाम हेमंत सी जाधव एवं अन्य, डायरी नंबर - 46584/2019