क्या दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से प्राप्त 18 महीने का D.El.Ed. NCTE द्वारा अनिवार्य 2 वर्षीय डिप्लोमा के बराबर है? सुप्रीम कोर्ट तय करेगा

Update: 2024-08-22 05:48 GMT

सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर फैसला करेगा कि क्या 18 महीने के दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम (Distance Learning) के माध्यम से प्राप्त प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा (D.El.Ed.) राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) द्वारा निर्धारित दो वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम के बराबर है।

जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 300 से अधिक व्यक्तियों द्वारा दायर अपील में नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया था कि 18 महीने के डिप्लोमा धारक पश्चिम बंगाल में 2022 की शिक्षक भर्ती प्रक्रिया के लिए पात्र नहीं हैं।

न्यायालय ने कहा,

“वकील ने प्रस्तुत किया कि इस मामले में मुख्य मुद्दा यह है कि क्या दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से 18 महीने की अवधि के लिए प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा NCT द्वारा निर्धारित 2 वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम के बराबर है। यह मुद्दा अन्य लोगों द्वारा दायर स्थानांतरण याचिकाओं में भी है।”

न्यायालय ने यह देखते हुए कि समानता का यह प्रश्न अन्य लोगों द्वारा भी उठाया गया, वर्तमान मामले को न्यायालय के समक्ष लंबित अन्य मामलों के साथ जोड़ दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं ने शुरू में पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया से 18 महीने के D.El.Ed. डिप्लोमा धारक उम्मीदवारों को बाहर रखे जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने जयवीर सिंह एवं अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा करते हुए रिट याचिका खारिज कर दी थी।

जयवीर सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS) द्वारा मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा (OLD) मॉडल के माध्यम से पेश किया जाने वाला 18 महीने का डी.एल.एड. पाठ्यक्रम NCTE द्वारा निर्धारित दो वर्षीय डिप्लोमा के समकक्ष नहीं माना जा सकता।

अपने निर्णय में हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पश्चिम बंगाल प्राथमिक शिक्षा बोर्ड NCTE के अधिकार के तहत जारी वैधानिक प्रावधानों और अधिसूचनाओं का उल्लंघन नहीं कर सकता। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि 18 महीने के डिप्लोमा धारक पश्चिम बंगाल में 2022 की शिक्षक भर्ती प्रक्रिया के लिए पात्र नहीं हैं।

न्यायालय ने यह भी कहा कि शैक्षणिक वर्षों और सत्रों की व्याख्या वैधानिक विनियमों के अनुरूप होनी चाहिए, याचिकाकर्ताओं के इस तर्क को खारिज कर दिया कि दो शैक्षणिक सत्रों को दो शैक्षणिक वर्षों के बराबर माना जा सकता है।

हाईकोर्ट ने दोहराया कि NCTE के नियम, जिसके लिए दो वर्षीय डिप्लोमा की आवश्यकता होती है, का पालन किया जाना चाहिए और कार्यकारी निर्देशों या व्याख्यात्मक प्रक्रियाओं के माध्यम से कोई भी विचलन अस्वीकार्य होगा। हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि वह NCTE विनियमों की सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या से अलग नहीं हो सकता।

इस प्रकार, याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

केस टाइटल- कौसिक दास और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।

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