उपभोग बंधक में मोचन के लिए परिसीमन अवधि बंधक के भुगतान की तारीख से शुरू होती है: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-12-29 06:21 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि उपभोग बंधक के मामलों में मोचन (Redemption) के लिए परिसीमन की अवधि बंधक बनाने की तारीख से शुरू नहीं होती है, बल्कि उस तारीख से शुरू होती है जिस पर बंधक की रकम कानून के अनुसार वास्तव में भुगतान या समायोजित की जाती है।

परिसीमन के आधार पर मोचन का दावा खारिज करने की मांग करने वाले बंधकदारों द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि परिसीमन अधिनियम के तहत निर्धारित परिसीमन अवधि की मात्र समाप्ति एक उपभोग बंधक में बंधककर्ता के मोचन के अधिकार को समाप्त नहीं कर सकती है। नतीजतन, बंधकदार केवल समय बीतने के आधार पर बंधक संपत्ति पर स्वामित्व या मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता है।

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि परिसीमन अधिनियम की अनुसूची की धारा 61(ए) के तहत उपभोग बंधक में परिसीमन बंधक की तारीख से शुरू नहीं होता है। इसके बजाय, यह केवल बंधक की रकम के भुगतान की तारीख से शुरू होता है, चाहे ऐसा भुगतान उपभोग से, आंशिक रूप से उपभोग से, या बंधककर्ता द्वारा जमा या भुगतान के माध्यम से किया गया हो, जैसा कि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 के तहत परिकल्पित है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला पंजाब में कृषि भूमि पर विवाद से संबंधित है, जिसे प्रतिवादियों के पूर्वजों द्वारा उपभोग के आधार पर बंधक रखा गया। बंधकदारों ने कलेक्टर के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें संपत्ति के मोचन की यह तर्क देते हुए अनुमति दी गई कि मोचन के लिए आवेदन परिसीमन द्वारा वर्जित था और उन्होंने समय के साथ स्वामित्व अधिकार प्राप्त कर लिए हैं।

जबकि ट्रायल कोर्ट और पहली अपीलीय अदालत ने बंधकदारों की दलील को स्वीकार कर लिया, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने उन निष्कर्षों को यह मानते हुए पलट दिया कि एक उपभोग बंधक में मोचन का अधिकार समय-बाधित नहीं था। हाईकोर्ट ने मोचन की अनुमति देने वाले कलेक्टर के आदेश को बहाल कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट के निष्कर्ष

हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सिंह राम (मृत) बनाम शिव राम और अन्य (2014) 9 SCC 185 में अपने पहले के तीन-जजों की पीठ के फैसले पर भरोसा किया। कोर्ट ने दोहराया कि उपभोग बंधक में जहां मोचन के लिए कोई विशिष्ट अवधि तय नहीं है, वहां बंधककर्ता का अधिकार तब तक जारी रहता है, जब तक बंधक की रकम चुकाई या समायोजित नहीं हो जाती।

पिछले फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा:

"जब कोई यूज़फ्रुक्टरी मॉर्गेज होता है तो लिमिटेशन की अवधि मॉर्गेज बनने की तारीख से नहीं, बल्कि मॉर्गेज के पेमेंट की तारीख से शुरू होती है - चाहे वह यूज़फ्रुक्टरी से हो या आंशिक रूप से यूज़फ्रुक्टरी से या आंशिक रूप से मॉर्गेजर द्वारा जमा किए गए पेमेंट से, जैसा कि ट्रांसफर ऑफ़ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 की धारा 52 के तहत बताया गया। तब तक लिमिटेशन एक्ट की अनुसूची की धारा 61 (a) के तहत लिमिटेशन की अवधि शुरू नहीं होगी। इसलिए सिर्फ़ तय अवधि खत्म होने से मॉर्गेजर का रिडेम्पशन का अधिकार खत्म नहीं हो सकता और इस तरह मॉर्गेज प्रॉपर्टी पर टाइटल और ओनरशिप की घोषणा मांगने का मॉर्गेजी का अधिकार अछूता रहता है।"

इस सिद्धांत को मौजूदा मामले पर लागू करते हुए कोर्ट ने माना कि रिडेम्पशन ऑर्डर को रद्द करने के लिए मॉर्गेजी का मुकदमा मानने लायक नहीं था। प्रतिवादियों की दलीलें स्वीकार करते हुए कोर्ट ने अपील खारिज की और हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा।

Case : Dalip Singh (D) through LRs v. Sawan Singh (D) through LRs

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