निरस्तीकरण याचिका में डिस्चार्ज याचिका की तुलना में व्यापक चुनौती उपलब्ध: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि कोई आरोपी आरोप पत्र दाखिल करने के बाद भी दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत आपराधिक कार्यवाही निरस्त करने के लिए याचिका दायर कर सकता है। इसने इस तर्क को खारिज कर दिया कि आरोपी को आरोप तय होने तक इंतजार करना चाहिए। फिर पुनर्विचार आवेदन के माध्यम से आरोप तय करने के आदेश को चुनौती देनी चाहिए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निरस्तीकरण याचिका में डिस्चार्ज याचिका की तुलना में चुनौती के व्यापक आधार उपलब्ध होंगे।
जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ आरोपी द्वारा दायर आपराधिक अपील पर सुनवाई की, जिसमें आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल होने के बाद निरस्तीकरण याचिका को 'निरर्थक' घोषित करते हुए खारिज कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता की अपील का विरोध करते हुए प्रतिवादी-उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि एक बार उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल हो जाने के बाद आरोपी आरोप तय होने तक प्रतीक्षा कर सकता था। पुनर्विचार आवेदन के माध्यम से आरोप तय करने के आदेश को चुनौती दे सकता था।
प्रतिवादी का तर्क खारिज करते हुए न्यायालय ने उनके तर्क पर आश्चर्य व्यक्त किया।
न्यायालय ने कहा,
“उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले विद्वान वकील ने प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि अपीलकर्ताओं के पास पुनर्विचार आवेदन दायर करके आरोप तय करने के आदेश को चुनौती देने का प्रभावी उपाय है। हम राज्य सरकार द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण को देखकर आश्चर्यचकित हैं। राज्य सरकार द्वारा जो सुझाव दिया गया, वह यह है कि एक बार आरोप-पत्र दाखिल हो जाने के बाद आरोपी आरोप तय होने तक प्रतीक्षा करने के अलावा कुछ नहीं कर सकता। उसके बाद आरोप तय करने के आदेश को चुनौती देने के लिए पुनर्विचार आवेदन दायर कर सकता है।”
न्यायालय ने कहा कि यद्यपि अपीलकर्ता-अभियुक्त डिस्चार्ज आवेदन दायर कर सकता है, लेकिन यह देखा गया कि डिस्चार्ज के लिए आवेदन का दायरा आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की याचिका के दायरे से पूरी तरह अलग है।
न्यायालय ने तर्क दिया,
“डिस्चार्ज के लिए मामले पर बहस करते समय अपीलकर्ता किसी ऐसे दस्तावेज़ पर भरोसा करने की स्थिति में नहीं होंगे, जो चार्जशीट का हिस्सा नहीं है। डिस्चार्ज आवेदन पर बहस करते समय कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग का आधार उपलब्ध नहीं होगा। हालांकि, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 या भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रद्द करने की याचिका में कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के आधार पर चुनौती सहित व्यापक चुनौती उपलब्ध है।”
न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त को निरस्तीकरण याचिका से लाभ होगा, क्योंकि वह उन दस्तावेजों पर भरोसा कर सकता है, जो चार्जशीट का हिस्सा नहीं हैं।
अदालत ने कहा,
“ऐसी कार्यवाही में अभियुक्त उन दस्तावेजों पर भरोसा कर सकता है, जो चार्जशीट का हिस्सा नहीं हैं। इसलिए हम राज्य के लिए उपस्थित वकील द्वारा प्रस्तुत किए गए सबमिशन अस्वीकार करते हैं। हालांकि राज्य की ओर से प्रस्तुत किए गए तर्कों का कोई आधार नहीं है, लेकिन हमने इस पर विस्तार से विचार किया, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसी तरह के मामले में इस तरह के तर्क न दिए जाएं।”
चूंकि हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता की याचिका को गुण-दोष के आधार पर नहीं सुना, इसलिए अदालत ने विवादित आदेश रद्द कर दिया और मामला हाईकोर्ट वापस भेज दिया, जिसे 6 जनवरी, 2025 को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया।
तदनुसार, अपील को अनुमति दी गई।
केस टाइटल: मुकेश और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य।