हाईकोर्ट का आदेश 'मनमानेपन और विकृति की झलक', सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों को सुने बिना दिया गया हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (11 मार्च) को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का घोर उल्लंघन करते हुए पारित इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, जिसके तहत विपरीत पक्षों को सुने बिना आदेश पारित किया गया।
हाईकोर्ट के आदेश को मनमाना और विकृत करार देते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने पाया कि यह आदेश विपरीत पक्षकारों को नोटिस दिए बिना और स्थायी वकील को उचित जवाब दाखिल करने का अवसर दिए बिना जल्दबाजी में पारित किया गया था।
जस्टिस संदीप मेहता द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया,
“रिकॉर्ड से निकले स्वीकृत तथ्यों के अवलोकन पर हम यह मानने के लिए सहमत हैं कि हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश में मनमानी और विकृति की बू आती है। विवादित भूमि भूखंड पर स्वामित्व का दावा करते हुए दायर की गई रिट याचिका को बहुत जल्दबाजी में लिया गया और सभी उत्तरदाताओं को औपचारिक नोटिस जारी किए बिना अनुमति दे दी गई। यहां तक कि राज्य प्राधिकारियों को भी जवाब दाखिल करने का उचित अवसर नहीं दिया गया। सरकारी वकील को बिना कोई औपचारिक नोटिस जारी किए उपस्थित होने का निर्देश दिया गया और तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश करने के लिए एक दिन का अवसर दिया गया।''
केस टाइटल: सुनीता देवी बनाम अविनाश और अन्य