सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब किसी अभ्यर्थी की नियुक्ति जाली शैक्षिक प्रमाण पत्र के आधार पर होती है तो यह कृत्य "अक्षम्य" है और केवल इसलिए बर्खास्तगी को अमान्य नहीं माना जाएगा, क्योंकि पूरी विभागीय जांच नहीं की गई।
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने दिल्ली पुलिस कांस्टेबल की बर्खास्तगी को बहाल करते हुए कहा कि जब जालसाजी के मूल आरोप का खंडन नहीं किया जाता है तो औपचारिक जांच का अभाव बर्खास्तगी आदेश को अमान्य नहीं करता।
कोर्ट ने कहा,
"यह भी स्वीकार किया जाता है कि प्रतिवादी (अभ्यर्थी) द्वारा इस बात का कोई खंडन नहीं किया गया कि उसकी नियुक्ति के समय अपीलकर्ताओं के समक्ष प्रस्तुत किया गया प्रमाणपत्र/डिग्री, जिसके आधार पर उसे कांस्टेबल के रूप में नियुक्त किया गया, वास्तविक है।"
अदालत ने कहा,
"मौजूदा मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में विभागीय जांच न होना प्रतिवादी के विरुद्ध पारित सेवा से बर्खास्तगी के अंतिम आदेश को अमान्य करने का कारक नहीं हो सकता।"
यह मामला 1988 में दिल्ली पुलिस में प्रतिवादी की कांस्टेबल के रूप में नियुक्ति से संबंधित था। 1996 में एक शिकायत से पता चला कि भर्ती के दौरान उसने जो डिग्री प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया, वह जाली था। पुलिस अधिकारियों ने पूरी विभागीय जांच शुरू करने के बजाय 1997 में उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया। बाद में कैट ने इस बर्खास्तगी को चुनौती दी और उसे रद्द कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा और मामले को पूरी जांच के लिए वापस भेज दिया।
मामले को पूरी जांच के लिए वापस भेजने के हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए पुलिस विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
हाईकोर्ट का फैसला रद्द करते हुए जस्टिस अमानुल्लाह द्वारा सुनाए गए आदेश में कहा गया कि जब जालसाजी का मूल तथ्य निर्विवाद हो तो बर्खास्तगी की पूरी जांच का अभाव आवश्यक नहीं होगा।
अदालत ने कहा,
"यह तथ्य कि एक बार जाली डिग्री/प्रमाणपत्र के आधार पर कोई व्यक्ति देश की वर्दीधारी सेवा, यानी पुलिस, जो कानून के शासन को बनाए रखने के लिए है, उसमें नियुक्ति पा लेता है, प्रतिवादी का कृत्य अक्षम्य है।"
अदालत ने इस ओर इशारा करते हुए कहा कि पुलिस कांस्टेबल की नौकरी हासिल करने के लिए प्रतिवादी द्वारा जालसाजी के कृत्य को, जो कानून के शासन को बनाए रखने के लिए है, केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि पूरी जांच किए बिना ही बर्खास्तगी का आदेश पारित कर दिया गया।
तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई।
Cause Title: COMMISSIONER OF POLICE & ORS. Vs. EX. CT. VINOD KUMAR