Evidence Act | पुलिस जांच के दौरान आरोपी द्वारा सौंपे गए सामान को धारा 27 के तहत बरामदगी नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी की हिरासत से आपत्तिजनक सामान की बरामदगी को एविडेंस एक्ट की धारा 27 को लागू करने के लिए किसी खुलासे वाले बयान के बाद की गई खोज नहीं माना जा सकता। किसी खुलासे वाले बयान को धारा 27 के दायरे में लाने के लिए आरोपी द्वारा संबंधित तथ्य या वस्तु को पहले छिपाया जाना चाहिए और पुलिस द्वारा उसकी बाद में की गई खोज आरोपी द्वारा दी गई जानकारी का सीधा नतीजा होनी चाहिए।
जस्टिस एहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने यह टिप्पणी तब की, जब वे IPC की धारा 34 सपठित धारा 302 (हत्या) और 376D (सामूहिक बलात्कार) और SC/ST Act की धारा 3(2)(v), साथ ही IPC की धारा 34 सपठित धारा 404 के तहत किए गए अपराधों के लिए अपीलकर्ता-दोषी पर लगाई गई सज़ा की मात्रा पर एक आपराधिक अपील पर फैसला कर रहे थे।
यह मामला एक महिला की हत्या से जुड़ा था, जिसे एक सुबह उसके पति ने एक गांव के पास छोड़ा, जिसके बाद वह लापता हो गई और उससे संपर्क नहीं हो सका। अगले दिन उसका शव पास की सड़क के किनारे झाड़ियों में मिला। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि तीन आरोपियों ने उसका पीछा किया, एक सुनसान जगह पर उसके साथ बलात्कार किया और सबूत मिटाने के लिए उसका गला काट दिया। उन पर IPC की धारा 34 सपठित धारा 302 और 376D के तहत, साथ ही SC/ST Act के प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए। ट्रायल कोर्ट ने मौत की सज़ा सुनाई, जिसे बाद में हाईकोर्ट ने कथित इकबालिया बयानों और धारा 27 के तहत बरामदगी पर भरोसा करते हुए बिना किसी छूट के आजीवन कारावास में बदल दिया।
हालांकि दोषसिद्धि बरकरार रखी गई, लेकिन कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का आरोपी को दोषी ठहराने के लिए गिरफ्तारी के समय आरोपी के पास पहले से मौजूद सामान की पुलिस बरामदगी पर भरोसा करना और उन्हें धारा 27 के तहत खोज के रूप में बताना, कानूनी रूप से गलत है।
चूंकि आरोपी के पास मौजूद सामान की बरामदगी तब की गई, जब आरोपी ने नियमित व्यक्तिगत जांच के दौरान उन्हें पुलिस को सौंप दिया था, इसलिए कोर्ट ने कहा कि इसे खोज नहीं माना जाएगा, क्योंकि धारा 27 को लागू करने के लिए छिपाने का तत्व गायब था।
कोर्ट ने कहा,
"यहां तक कि प्रॉसिक्यूशन की कहानी के अनुसार भी उन्हें कन्फेशन के साथ PW15 को सौंपा गया और कहा गया कि ये चीज़ें गिरफ्तारी के समय आरोपी के पास थीं।"
कोर्ट ने आगे कहा,
"इसमें कोई छिपाव नहीं है और किसी भी सूरत में गिरफ्तारी के समय जब पुलिस सिर्फ़ तलाशी लेकर आरोपी के शरीर से ये चीज़ें ज़ब्त कर सकती है तो इसे धारा 27 के तहत रिकवरी के तौर पर दिखाने की कोशिश बिल्कुल भी मंज़ूर नहीं की जा सकती।"
कोर्ट ने कहा,
"यह धारा 27 के मूल सिद्धांत के खिलाफ है, क्योंकि जिस खुलासे पर भरोसा किया गया, वह सिर्फ़ छिपाव और ऐसे खुलासे के आधार पर बरामद की गई चीज़ों से संबंधित हो सकता है। यह बरामदगी गवाहों की मौजूदगी में होनी चाहिए। हमें आरोपी को दोषी ठहराने के लिए हाईकोर्ट द्वारा बताए गए हालात को मानने का कोई कारण नहीं दिखता।"
कोर्ट ने ऐसी जांच के तरीकों के खिलाफ चेतावनी दी जो बनावटी बरामदगी के ज़रिए गैर-कानूनी कन्फेशन को सही ठहराने की कोशिश करते हैं।
कोर्ट ने सज़ा को बिना किसी छूट के उम्रकैद से बदलकर बिना किसी छूट के 25 साल कर दिया।
Cause Title: Shaik Shabuddin Versus State of Telangana