आपराधिक अभियोजन के माध्यम से दबाव डालकर शुद्ध सिविल विवादों को निपटाने के प्रयासों की निंदा की जानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्टया कहा कि केवल अनुबंध का उल्लंघन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत धोखाधड़ी या विश्वास के उल्लंघन का अपराध नहीं है, जब तक कि धोखाधड़ी या बेईमानी का इरादा न दिखाया जाए।
कोर्ट ने कहा,
"प्रथम दृष्टया, हमारी राय में केवल अनुबंध का उल्लंघन आईपीसी की धारा 420 या धारा 406 के तहत अपराध नहीं है, जब तक कि लेनदेन की शुरुआत में धोखाधड़ी या बेईमानी का इरादा नहीं दिखाया गया हो।"
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने पूरी तरह से सिविल विवादों को आपराधिक मामलों में परिवर्तित करने की निंदा की।
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन बनाम एनईपीसी इंडिया लिमिटेड और अन्य पर अपनी निर्भरता रखते हुए न्यायालय ने कहा:
"आपराधिक अभियोजन के माध्यम से दबाव डालकर सिविल विवादों और दावों को निपटाने के किसी भी प्रयास को, जिसमें कोई आपराधिक अपराध शामिल नहीं है। इस तरह के मामलों की निंदा और हतोत्साहित किया जाना चाहिए।"
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट, जोधपुर पीठ द्वारा पारित आदेश के खिलाफ आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं। मौजूदा मामले में आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आरोप यह है कि उन्होंने शिकायतकर्ता के साथ बेचने का समझौता किया और 80 लाख रुपये प्राप्त किए। इसके बाद शिकायतकर्ता को न तो रजिस्ट्रेशन और न ही पैसे वापस किए गए।
इस प्रकार, उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 420 और 120-बी के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
व्यथित होकर आरोपी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अग्रिम जमानत की गुहार लगाई। उसमें अन्य बातों के अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि यह अनुबंध के उल्लंघन का मामला है और सिविल प्रकृति का है। हालांकि, हाईकोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी। इस प्रकार, उन्होंने वर्तमान अपील को प्राथमिकता दी।
उपरोक्त प्रक्षेपण के मद्देनजर, अदालत संतुष्ट थी कि अपीलकर्ताओं ने अग्रिम जमानत देने के लिए अपना मामला बना लिया। तदनुसार, अदालत ने यह स्पष्ट करते हुए उन्हें जमानत दे दी कि मामले की सुनवाई योग्यता तय करते समय इन टिप्पणियों पर विचार नहीं किया जाएगा।
केस टाइटल: जय श्री बनाम राजस्थान राज्य, डायरी नंबर- 45821 - 2023
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