सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (Domestic Violence Act) भारत में हर महिला पर लागू होता है, चाहे उसकी धार्मिक संबद्धता कुछ भी हो।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा,
"यह अधिनियम नागरिक संहिता का एक हिस्सा है, जो भारत में हर महिला पर लागू होता है, चाहे उसकी धार्मिक संबद्धता और/या सामाजिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो, जिससे संविधान के तहत गारंटीकृत उसके अधिकारों की अधिक प्रभावी सुरक्षा हो और घरेलू संबंधों में होने वाली घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की सुरक्षा हो सके।"
खंडपीठ ने यह टिप्पणी हाईकोर्ट द्वारा मजिस्ट्रेट को धारा 12 के तहत पारित आदेश में परिवर्तन/संशोधन के लिए एक्ट की धारा 25(2) के तहत आवेदन स्वीकार करने के निर्देश के खिलाफ एक अपील पर फैसला करते हुए की।
इस मामले में 23.02.2015 को मजिस्ट्रेट ने Domestic Violence Act की धारा 12 के तहत आदेश पारित किया, जिसमें पत्नी को मासिक भरण-पोषण के रूप में 12,000 रुपये और मुआवजे के रूप में 1,00,000 रुपये दिए जाने की अनुमति दी गई। आदेश अंतिम हो गया। 2020 में पति ने परिस्थितियों में बदलाव के कारण आदेश रद्द/संशोधित करने की मांग करते हुए एक्ट की धारा 25(2) के तहत आवेदन दायर किया। हालांकि मजिस्ट्रेट ने आवेदन खारिज कर दिया, लेकिन सेशन कोर्ट ने मजिस्ट्रेट को इस पर विचार करने का निर्देश दिया। सेशन कोर्ट के आदेश के खिलाफ पत्नी की पुनर्विचार याचिका हाईकोर्ट ने खारिज की और उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
पत्नी ने तर्क दिया कि पति वास्तव में 2015 में पारित मूल आदेश को निरस्त करने की मांग कर रहा था, जो धारा 25(2) के तहत स्वीकार्य नहीं है। धारा 25(2) के तहत आवेदन में पति ने 2015 में पारित आदेश को निरस्त करने तथा पत्नी को उसके द्वारा प्राप्त संपूर्ण राशि वापस करने का निर्देश देने की मांग की।
न्यायालय ने पाया कि निरस्तीकरण के लिए आवेदन किए जाने से पहले की अवधि के लिए 23.02.2015 का आदेश निरस्त नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने माना कि घरेलू हिंसा से Domestic Violence Act (DV Act) की धारा 12 के तहत पारित आदेश में परिवर्तन/संशोधन/निरसन केवल आदेश पारित होने के बाद हुई परिस्थितियों में परिवर्तन के आधार पर धारा 25(2) के माध्यम से मांगा जा सकता है।
न्यायालय ने कहा,
"एक्ट की धारा 25(2) के आह्वान के लिए एक्ट के तहत आदेश पारित होने के बाद परिस्थितियों में परिवर्तन होना चाहिए।"
केस टाइटल : एस विजिकुमारी बनाम मोवनेश्वराचारी सी