दिव्यांगों के अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने UPSC को एग्जाम से 7 दिन पहले तक स्क्राइब बदलने की इजाज़त देने का दिया निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने एक फ़ैसला सुनाया, जिससे दिव्यांग UPSC कैंडिडेट्स के लिए स्क्राइब का नाम बदलना आसान हो जाएगा और जिन्हें देखने में दिक्कत है, उनके लिए स्क्रीन रीडर सॉफ्टवेयर लागू करने में भी मदद मिलेगी।
कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक, UPSC एग्जाम में बैठने वाले कैंडिडेट्स, जो स्क्राइब के लिए एलिजिबल हैं, उन्हें एग्जाम से कम-से-कम 7 दिन पहले तक स्क्राइब का नाम बदलने की रिक्वेस्ट करने की इजाज़त होगी। इसके अलावा, UPSC अपने एग्जाम में देखने में दिक्कत वाले कैंडिडेट्स के लिए स्क्रीन रीडर सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल के लिए 2 महीने के अंदर एक प्लान बनाकर कोर्ट के सामने रखेगा।
दिलचस्प बात यह है कि यह फ़ैसला इंटरनेशनल डे ऑफ़ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज़ के साथ मेल खाता है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने 'मिशन एक्सेसिबिलिटी' नाम की रिट याचिका पर यह फैसला सुनाया। यह एक ऑर्गनाइज़ेशन है, जो PwDs के अधिकारों की वकालत करता है। इस याचिका में यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन द्वारा आयोजित सिविल सर्विसेज़ एग्जाम में स्क्राइब रजिस्ट्रेशन की टाइमलाइन में बदलाव करने और एलिजिबल कैंडिडेट्स के लिए एक्सेसिबल डिजिटल क्वेश्चन पेपर्स के साथ स्क्रीन रीडर सॉफ्टवेयर वाले लैपटॉप के इस्तेमाल की इजाज़त देने की मांग की गई।
कोर्ट ने कहा कि UPSC ने तब से एक सोच-समझकर आगे बढ़ने वाला फैसला लिया ताकि उसके द्वारा आयोजित की जाने वाली अलग-अलग एग्जाम्स में देखने में दिक्कत वाले कैंडिडेट्स को स्क्रीन रीडर सॉफ्टवेयर की सुविधा दी जा सके। हालांकि, कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि फैसले को लागू करने में आने वाली कमियों को "ठोस प्लानिंग, इंटर-एजेंसी कोलेबोरेशन और एक जैसे स्टैंडर्ड्स बनाने" के ज़रिए दूर किया जाना चाहिए ताकि आने वाले एग्जाम्स में एक्सेसिबिलिटी का लक्ष्य सिर्फ़ कागज़ों तक ही सीमित न रहे।
इस पृष्ठभूमि में UPSC के फैसले को असरदार तरीके से लागू करने के लिए कोर्ट ने ये निर्देश दिए:
- UPSC यह पक्का करेगा कि उसके द्वारा आयोजित परीक्षाओं के हर नोटिफिकेशन में एक साफ प्रोविजन शामिल किया जाए, जिससे स्क्राइब के लिए एलिजिबल कैंडिडेट परीक्षा की तारीख से कम-से-कम सात दिन पहले तक स्क्राइब बदलने की रिक्वेस्ट कर सकें। साथ ही ऐसी रिक्वेस्ट पर निष्पक्ष रूप से विचार किया जाएगा और एप्लीकेशन मिलने के तीन वर्किंग डेज़ के अंदर एक तर्कपूर्ण ऑर्डर द्वारा निपटाया जाएगा।
- UPSC इस ऑर्डर की तारीख से दो महीने के अंदर एक पूरा कंप्लायंस एफिडेविट फाइल करेगा, जिसमें उसके द्वारा आयोजित परीक्षाओं में देखने में दिक्कत वाले कैंडिडेट के लिए स्क्रीन रीडर सॉफ्टवेयर के डिप्लॉयमेंट और इस्तेमाल के लिए प्रस्तावित प्लान ऑफ एक्शन, टाइमलाइन और तौर-तरीकों को साफ तौर पर बताया जाएगा। एफिडेविट में सभी या तय परीक्षा केंद्रों पर सॉफ्टवेयर और उससे जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की टेस्टिंग, स्टैंडर्डाइजेशन और वैलिडेशन के लिए प्रस्तावित स्टेप्स भी बताए जाएंगे। साथ ही यह भी बताया जाएगा कि यह सुविधा अगले एग्जाम साइकिल से सभी एलिजिबल कैंडिडेट के लिए चालू और उपलब्ध हो, इसकी संभावना कितनी है।
- UPSC, डिपार्टमेंट ऑफ़ एम्पावरमेंट ऑफ़ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज़ (DEPwD) और नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर द एम्पावरमेंट ऑफ़ पर्सन्स विद विजुअल डिसेबिलिटीज़ (NIEPVD) के साथ मिलकर स्क्रीन रीडर सॉफ्टवेयर और दूसरी मददगार टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के लिए एक जैसी गाइडलाइंस और प्रोटोकॉल बनाएगा ताकि सभी या पहचाने गए एग्जाम सेंटर्स पर एग्जाम प्रोसेस का स्टैंडर्डाइज़ेशन, एक्सेसिबिलिटी और सिक्योरिटी पक्की हो सके, जैसा उसे ठीक लगे।
- यूनियन ऑफ़ इंडिया, डिपार्टमेंट ऑफ़ पर्सनेल एंड ट्रेनिंग (DoPT) और मिनिस्ट्री ऑफ़ सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट के ज़रिए, ऊपर बताए गए तरीकों को तेज़ी से लागू करने के लिए UPSC को सभी ज़रूरी एडमिनिस्ट्रेटिव और टेक्निकल मदद देगा और जहां भी ज़रूरत होगी, राज्य सरकारों और एग्जाम अथॉरिटीज़ के साथ कोऑर्डिनेशन में मदद करेगा।
- इन तरीकों को इस तरह से लागू किया जाएगा, जिससे एलिजिबल कैंडिडेट्स को पूरी एक्सेस मिले और एग्जाम प्रोसेस की पवित्रता, गोपनीयता और निष्पक्षता बनी रहे।
कोर्ट ने कहा कि गवर्नेंस में सबको शामिल करने के लिए न सिर्फ़ प्रोग्रेसिव पॉलिसीज़ बनाना ज़रूरी है, बल्कि उन पॉलिसीज़ को ईमानदारी और असरदार तरीके से लागू करना भी ज़रूरी है। इसमें यह भी कहा गया कि UPSC के प्रोसेस ट्रांसपेरेंट, आसान और समाज के हर हिस्से की ज़रूरतों के हिसाब से सेंसिटिव होंगे।
आगे कहा गया,
"सही मायने में बराबरी का मतलब एक जैसा होना नहीं है, बल्कि उन रुकावटों को हटाना है, जो लोगों को बराबरी पर खड़े होने से रोकती हैं... दिव्यांग लोगों को दिए गए अधिकार भलाई के काम नहीं हैं, बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 में दिए गए बराबरी, सम्मान और भेदभाव न करने के संवैधानिक वादे का इज़हार हैं।"
Case Title: MISSION ACCESSIBILITY Versus UNION OF INDIA AND ANR., W.P.(C) No. 206/2025