Arbitration | मामले से असंबद्ध सरकारी अधिकारी को पंचाट की सुपुर्दगी राज्य को वैध सेवा नहीं मानी जाएगी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब सरकार या उसका कोई विभाग मध्यस्थता में पक्षकार हो तो किसी ऐसे अधिकारी को पंचाट की सुपुर्दगी, जो कार्यवाही से जुड़ा या उससे अवगत नहीं है, पंचाट को चुनौती देने की समय सीमा शुरू करने के लिए वैध सेवा नहीं मानी जा सकती।
भारत संघ बनाम टेक्को त्रिची इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स (2005) के अपने फैसले का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि पंचाट की प्रति "कार्यवाही के पक्षकार" को दी जानी चाहिए। यदि सरकार कार्यवाही का हिस्सा है तो पंचाट की प्रति ऐसे व्यक्ति को दी जानी चाहिए, जिसे इसकी जानकारी हो और जो पंचाट को समझने और विशेष रूप से उसे चुनौती देने का निर्णय लेने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हो।
न्यायालय ने कहा,
"इस न्यायालय ने यह माना है कि विशाल संगठनों के संदर्भ में पंचाट उस व्यक्ति द्वारा प्राप्त किया जाना चाहिए जिसे कार्यवाही की जानकारी हो और जो पंचाट के पंचाट को समझने और उसका मूल्यांकन करने तथा उचित आवेदन प्रस्तुत करने के मामले में निर्णय लेने के लिए सर्वोत्तम व्यक्ति हो।"
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने उस मामले की सुनवाई की, जिसमें 12 नवंबर 2013 को अपीलकर्ता के पक्ष में पंचाट पारित होने के बाद विवाद उत्पन्न हुआ था। पंचाट की हस्ताक्षरित प्रति प्रतिवादी के राज्य सिंचाई विभाग के असिस्टेंट इंजीनियर द्वारा प्राप्त की गई। इसके आधार पर पंचाट धारक ने तर्क दिया कि राज्य 90 दिनों के भीतर, अर्थात 12 फ़रवरी 2014 तक, अपनी चुनौती दायर करने के लिए बाध्य है।
हालांकि, प्रतिवादी ने धारा 34 के तहत अपनी याचिका 20 मार्च 2014 को, अर्थात 90 दिनों की अवधि के बाद यह तर्क देते हुए दायर की कि उसे कभी औपचारिक रूप से पंचाट की तामील नहीं की गई और उसे इसकी जानकारी तभी हुई, जब निष्पादन कार्यवाही शुरू की गई। ज़िला न्यायालय ने याचिका को समय-सीमा समाप्त होने के कारण खारिज कर दिया। हालांकि, बाद में कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस फैसले को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि असिस्टेंट इंजीनियर को आदेश की प्रति प्रदान करना "पक्ष" को वैध तामील नहीं माना जाएगा।
हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए न्यायालय ने कहा कि असिस्टेंट इंजीनियर द्वारा आदेश की प्रति प्राप्त करना, 1996 के अधिनियम के तहत प्रति की उचित तामील नहीं थी। इसे आदेश को चुनौती देने की समय-सीमा शुरू करने के लिए उचित तामील नहीं माना जा सकता।
न्यायालय ने कहा,
"टेक्को त्रिची इंजीनियर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स (सुप्रा) मामले में दिए गए सिद्धांत को लागू करते हुए उस असिस्टेंट इंजीनियर को आदेश की तामील करना, जो "मध्यस्थता का पक्षकार" नहीं था और जो आदेश पर आगे कोई निर्णय लेने की क्षमता में नहीं था, आदेश की वैध तामील नहीं होगी।"
तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई।
Cause Title: M/S. MOTILAL AGARWALA Versus STATE OF WEST BENGAL & ANR.