Delhi VAT Act | अधिकारियों को रिफंड प्रक्रिया और जारी करने के लिए समय सीमा का सख्ती से पालन करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-05-06 12:06 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विभाग को दिल्ली मूल्य वर्धित कर अधिनियम, 2004 (Delhi VAT Act) की धारा 38 के तहत रिफंड के प्रसंस्करण और जारी करने के लिए अनिवार्य रूप से समय सीमा का पालन करना चाहिए।

जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस पीबी वराले की खंडपीठ ने कहा,

"एक्ट की धारा 38(3) की भाषा अनिवार्य है और विभाग को प्रावधान के उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसमें निर्धारित समय-सीमा का पालन करना चाहिए, जो यह सुनिश्चित करना है कि रिफंड समय पर संसाधित और जारी किया जाए।"

दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए अदालत ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एन वेंकटरमन द्वारा प्रस्तुत विभाग की दलीलों को खारिज कर दिया, जिन्होंने कहा था कि धारा 38 की उप-धारा (3) और धारा 42 के तहत प्रदान की गई ब्याज की समयसीमा का उद्देश्य केवल गणना के लिए है।

जस्टिस पीएस नरसिम्हा द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया,

“इस तरह की व्याख्या (एएसजी द्वारा) प्रभावी रूप से विभाग को भविष्य की तारीख में उन्हें समायोजित करने के उद्देश्य से लंबी अवधि के लिए वापसी योग्य राशि को बनाए रखने में सक्षम बनाएगी। यह प्रावधान के उद्देश्य और उद्देश्य के विरुद्ध होगा। इसलिए यह तर्क खारिज किया जाता है।”

निर्धारिती/प्रतिवादी ने अधिनियम की धारा 38 के आलोक में विभाग से अतिरिक्त शुल्क का दावा किया। हालांकि, विभाग ने निर्धारिती को अतिरिक्त शुल्क राशि वापस नहीं की है। इसके बाद करदाता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हाईकोर्ट ने अधिनियम की धारा 38 (3) के आलोक में समायोजन आदेश पारित किया, जिसमें विभाग को 17,10,15,285/- और प्रतिवादी/निर्धारिती को विभिन्न तिमाहियों के लिए 5,44,39,148/- रुपये की अतिरिक्त शुल्क वापस करने का निर्देश दिया गया।

हाईकोर्ट ने फ्लिपकार्ट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम वैल्यू एडेड टैक्स ऑफिसर, वार्ड 300 के अन्य फैसले पर भरोसा जताया, जहां यह माना गया कि विभाग को धारा 38 के तहत रिफंड जारी करने और प्रसंस्करण के लिए समय सीमा का ईमानदारी से पालन करना चाहिए।

हाईकोर्ट ने कहा,

"विभाग के पास धारा 38 के तहत निर्धारित समय सीमा से अधिक राशि रखने का कोई कानूनी अधिकार या औचित्य नहीं है।"

हाईकोर्ट के फैसले में कोई खामी नहीं पाते हुए अदालत ने माना कि विभाग द्वारा प्रतिवादी/निर्धारिती को अतिरिक्त शुल्क वापस न करना उचित नहीं था।

अदालत ने कहा,

"इसलिए अपीलकर्ता-विभाग द्वारा निर्धारित अवधि से अधिक रिफंड राशि को बनाए रखना और फिर रिफंड अवधि के बाद जारी किए गए डिफ़ॉल्ट नोटिस के तहत देय राशि के खिलाफ रिफंड राशि को समायोजित करना उचित नहीं है।"

तदनुसार, विभाग द्वारा की गई अपील खारिज कर दी गई और विभाग को अधिनियम की धारा 42 के तहत ब्याज सहित राशि वापस करने का निर्देश दिया गया।

केस टाइटल: व्यापार एवं कर आयुक्त बनाम फेमसी प्रतिभा संयुक्त उद्यम

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