BREAKING| प्रक्रिया संबंधी सुरक्षा के उल्लंघन पर मौत की सज़ा को अनुच्छेद 32 के तहत चुनौती दी जा सकती है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने वसंत संपत दुपारे द्वारा दायर अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका स्वीकार की। दुपारे को चार साल की बच्ची के बलात्कार और हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था और उन्होंने अपनी सजा को चुनौती दी थी।
कोर्ट ने कहा,
"रिट याचिका स्वीकार की जाती है। हमारा मानना है कि संविधान का अनुच्छेद 32 इस न्यायालय को मृत्युदंड से संबंधित मामलों में, जहां अभियुक्त को मृत्युदंड की सज़ा सुनाई गई, सजा सुनाने के चरण को फिर से खोलने का अधिकार देता है, बिना यह सुनिश्चित किए कि मनोज मामले में निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन किया गया। इस सुधारात्मक शक्ति का प्रयोग ऐसे मामलों में मनोज मामले में निर्धारित सुरक्षा उपायों के कठोर अनुप्रयोग के लिए बाध्य करने के लिए किया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि दोषी व्यक्ति समान व्यवहार, व्यक्तिगत सजा और निष्पक्ष प्रक्रिया के उन मौलिक अधिकारों से वंचित न हो, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 प्रत्येक व्यक्ति को प्रदान करते हैं।
हालांकि, हम चेतावनी भी देते हैं। संविधान का अनुच्छेद 32 संवैधानिक उपचारों का आधार है, लेकिन इसके असाधारण दायरे को समाप्त हो चुके मामलों को फिर से खोलने का नियमित तरीका नहीं बनने दिया जा सकता। मामलों को फिर से खोलना केवल उन्हीं मामलों के लिए आरक्षित होगा, जहां नए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का स्पष्ट और विशिष्ट उल्लंघन हुआ हो, क्योंकि ये उल्लंघन इतने गंभीर हैं कि अगर इन्हें ठीक नहीं किया गया तो ये अभियुक्त के सम्मान और निष्पक्ष प्रक्रिया जैसे मूल अधिकारों को कमजोर कर देंगे।"
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने दुपारे और राज्य का पक्ष सुनने के बाद यह फैसला सुनाया। बेंच ने यह भी पूछा कि क्या न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका पर विचार कर सकता है, जिसमें मनोज बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2022) मामले में दिए गए फैसले के आलोक में मृत्युदंड की पुष्टि करने वाले अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की गई, जिसमें दंड को कम करने वाली परिस्थितियों को भी ध्यान में रखने का प्रावधान था।
न्यायालय ने कहा कि मनोज मामले में दिए गए उसके पूर्व के निर्देश लागू होंगे। हालांकि, उसने आगाह किया कि अनुच्छेद 32 के तहत समाप्त हो चुके मामलों को नियमित रूप से फिर से नहीं खोला जा सकता। उसने कहा कि यह राहत उन मामलों के लिए सुरक्षित रहेगी, जहां प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का उल्लंघन हुआ हो।
न्यायालय ने दुपारे की दोषसिद्धि बरकरार रखी। हालांकि, उसने सजा पर 2017 के वर्तमान दृष्टिकोण को दरकिनार कर दिया और मामले को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई के समक्ष उचित सुनवाई के लिए रख दिया ताकि मनोज मामले के अनुरूप सजा पर नए सिरे से सुनवाई की जा सके।
संक्षेप में मामला
दुपारे को नागपुर के एडिशनल सेशन जज ने मौत की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर दी और मृत्युदंड की सज़ा बरकरार रखी। व्यथित होकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन तीन जजों की बेंच ने 26 नवंबर, 2014 को हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा। दुपारे द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका 3 मई, 2017 को खारिज कर दी गई। राज्यपाल और राष्ट्रपति ने भी क्रमशः 2022 और 2023 में उनकी दया याचिकाएं खारिज कर दीं, जिसके बाद वर्तमान रिट याचिका दायर की गई।
दुपारे की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने न्यायालय से इस बात पर विचार करने का आग्रह किया कि क्या मनोज मामले में दिए गए दिशानिर्देश इस मामले पर लागू होते हैं। इसके विपरीत, महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल डॉ. बीरेंद्र सराफ ने सुप्रीम कोर्ट के अंतिम आदेश को चुनौती देने के लिए अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करने पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि दुपारे के पास एकमात्र उपाय उपचारात्मक याचिका ही है।
संदर्भ के लिए, मनोज मामले में जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा कि मुकदमे के चरण में ही अपराध को कम करने वाली परिस्थितियों पर विचार किया जाना चाहिए और राज्य को अभियुक्त के मानसिक और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन का खुलासा करने वाली सामग्री प्रस्तुत करनी चाहिए।
मामले में नाल्सर लॉ यूनिवर्सिटी के स्क्वायर सर्कल क्लिनिक ने याचिकाकर्ता को कानूनी सहायता प्रदान की।
Case Title: VASANTA SAMPAT DUPARE Versus UNION OF INDIA AND ANR., W.P.(Crl.) No. 371/2023