जांच में सहयोग का मतलब यह नहीं कि आरोपी को अपराध कबूल करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2024-08-08 07:36 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि जांच में सहयोग का मतलब यह नहीं है कि आरोपी को जांच अधिकारी के सामने अपना अपराध कबूल करना चाहिए।

कोर्ट ने कहा,

"हमारा दृढ़ मत है कि आरोपी द्वारा सहयोग न करना एक बात है और आरोपी द्वारा अपराध कबूल करने से इनकार करना दूसरी बात है। आरोपी पर यह बाध्यता नहीं होगी कि पूछताछ किए जाने पर उसे अपराध कबूल करना होगा। उसके बाद ही जांच अधिकारी संतुष्ट होगा कि आरोपी ने जांच में सहयोग किया।"

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने पुलिस निरीक्षक और मजिस्ट्रेट को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित अंतरिम अग्रिम जमानत आदेश का उल्लंघन करते हुए आरोपी की गिरफ्तारी और रिमांड के लिए अदालत की अवमानना ​​का दोषी ठहराते हुए ये महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं।

सुनवाई के दौरान, मजिस्ट्रेट ने तर्क दिया कि पुलिस ने आरोपी की हिरासत रिमांड इसलिए मांगी थी, क्योंकि वह जांच में "सहयोग" नहीं कर रहा था। इसी संदर्भ में फैसले में उपरोक्त टिप्पणियां की गईं।

न्यायालय ने टिप्पणी की,

"छठे एसीजेएम (अवमाननाकर्ता-प्रतिवादी नंबर 7) ने अपने हलफनामे में इस तथ्य पर बहुत जोर दिया कि जांच अधिकारी ने अपने आवेदन में उल्लेख किया कि आरोपी-याचिकाकर्ता जांच में सहयोग नहीं कर रहा है। हम यह समझने में विफल हैं कि आरोपों के आधार पर आपराधिक मामले में सहयोग क्या माना जा सकता है, जो प्रथम दृष्टया सिविल विवाद से संबंधित प्रतीत होता है।"

न्यायालय ने बताया कि पुलिस अधिकारी के समक्ष आरोपी द्वारा किया गया कोई भी कबूलनामा साक्ष्य में अस्वीकार्य है और रिकॉर्ड का हिस्सा भी नहीं बन सकता।

इस संबंध में संजू बंसल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में पारित हाल के आदेश का भी संदर्भ दिया गया कि इकबालिया बयानों को आरोपपत्र का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता।

केस टाइटल: तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह बनाम गुजरात राज्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 14489/2023, तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह बनाम कमल दयानी डायरी नंबर- 1106 - 2024

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