यदि अनुपस्थित हैं तो 6 सप्ताह में राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण गठित करें: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे 6 सप्ताह के भीतर उन स्थानों पर राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) गठित करें, जहां उनका गठन नहीं हुआ।
यह निर्देश तब दिया गया, जब न्यायालय राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के उस आदेश के विरुद्ध दीवानी अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें SEIAA के बजाय जिला पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (DEIAA) द्वारा कुछ पट्टों में पर्यावरण मंजूरी दिए जाने को अस्वीकृत किया गया था।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की खंडपीठ 13 सितंबर, 2018 को NGT, दिल्ली के आदेश को केंद्र द्वारा चुनौती दिए जाने पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को 2016 की अपनी अधिसूचना को संशोधित करने का निर्देश दिया गया, जिसमें 0 से 25 हेक्टेयर तक के क्षेत्रों के लिए खनन पट्टों में विनियामक मंजूरी से छूट दी गई थी।
NTG के समक्ष दिनांक 15.01.2016, 20.01.2016 और 01.07.2016 को चुनौती दी गई अधिसूचनाओं का प्रभाव 0 से 25 हेक्टेयर तक के क्षेत्रों के लिए लघु खनिजों के खनन के संबंध में पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करने की प्रक्रिया को कमजोर करना था, क्योंकि यह ऐसे पट्टों को 'बी-2 श्रेणी की परियोजनाओं' के अंतर्गत लाता था, जहां सार्वजनिक परामर्श, पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) और पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP) को छूट दी गई।
बी-2 श्रेणी की परियोजनाओं के तहत EC को DEIAA द्वारा प्रदान किया जाना था, जबकि SEIAA बी-1 श्रेणी की परियोजनाओं (50-25 हेक्टेयर के बीच के क्षेत्रों के पट्टे) में अनुदान की देखरेख करता है।
NTG की पीठ ने कहा कि ऐसी अधिसूचनाएं, विशेष रूप से 15 जनवरी, 2016 की, दीपक कुमार बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत थीं, जहां यह माना गया कि आकार के संबंध में सभी खनन पट्टों के लिए पर्यावरण मंजूरी प्राप्त करना आवश्यक होगा तथा सभी प्रमुख खनिजों की तरह सख्त विनियामक ढांचे के अधीन होना होगा।
इस प्रकार न्यायाधिकरण ने आदेश दिया:
"यह दोहराया जाता है कि लागू विनियामक व्यवस्था से बचने के उद्देश्य से पट्टा क्षेत्र को विभाजित करने के किसी भी प्रयास को गंभीरता से लिया जाएगा। हमारे विचार में यह पर्यावरण के हित में होगा, जैसा कि दीपक कुमार (सुप्रा) के मामले में विस्तार से चर्चा की गई तथा यह राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 20 के तहत परिकल्पित एहतियाती सिद्धांत और सतत विकास के सिद्धांत को भी संतुष्ट करेगा।"
"इसलिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, उपरोक्त निर्देशों और टिप्पणियों के संदर्भ में 15 जनवरी, 2016 की अधिसूचना में निर्धारित प्रक्रिया को संशोधित करने के लिए उचित कदम उठाएगा, जिससे यह दीपक कुमार (सुप्रा) में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्देशों के अक्षरशः और भावना के अनुरूप हो।"
इसके बाद संघ ने 12.12.2018 को कार्यालय ज्ञापन (ओएम) जारी किया, जिसके द्वारा जिला पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (DEIAA) को निष्क्रिय कर दिया गया। इसके बाद DEIAA का कार्यभार SEIAA को सौंप दिया गया। 15.12.2021 और 28.04.2023 को ओएम का एक और सेट जारी किया गया, जिसमें बी2 परियोजना श्रेणियों के तहत खनन पट्टों के लिए सभी EC अनुदान DEIAA के बजाय SEIAA द्वारा दिए जाने थे।
उपरोक्त के मद्देनजर, 15 जनवरी, 2016 से 13 सितंबर, 2018 की अवधि के बीच DEIAA द्वारा जारी किए गए कई EC का SEIAA द्वारा पुनर्मूल्यांकन किया जाना था। इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने 12 नवंबर को SEIAA द्वारा ऐसी अवधि के भीतर आने वाले EC के पुनर्मूल्यांकन के लिए 31 मार्च, 2025 तक का समय बढ़ा दिया।
पीठ ने कहा:
"हम राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरणों द्वारा पुनर्मूल्यांकन पूरा करने के लिए समय 31.03.2025 तक बढ़ाते हैं। यह निर्देश उन मामलों में लागू होगा जहां पर्यावरण मंजूरी वैध है, क्योंकि खनन गतिविधि केवल EC की वैधता अवधि के दौरान ही जारी रह सकती है।"
जिन पक्षों ने अभी तक SEIAA द्वारा पुनर्मूल्यांकन के लिए आवेदन नहीं किया है, उन्हें अतिरिक्त रूप से 3 सप्ताह का समय दिया गया।
पीठ ने आगे निर्देश दिया था कि "राज्य सरकारें यह भी सुनिश्चित करेंगी कि SEIAA, जहां गठित नहीं है, आज से छह सप्ताह की अवधि के भीतर गठित हो जाए।"
अब मामले की सुनवाई जनवरी 2025 में होगी।
केस टाइटल: भारत संघ बनाम राजीव सूरी | सिविल अपील संख्या 3799-3800/2019