सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुकंपा नियुक्ति कोई निहित अधिकार नहीं है, जिसे किसी भी तरह की जांच या चयन प्रक्रिया के बिना दिया जा सकता है।
कोर्ट ने दोहराया कि अनुकंपा नियुक्ति हमेशा विभिन्न मापदंडों की उचित और सख्त जांच के अधीन होती है।
जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ऐसे व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर फैसला कर रही थी, जिसके पिता, जो पुलिस कांस्टेबल थे, उसकी मृत्यु के कारण अनुकंपा नियुक्ति के लिए दावा खारिज कर दिया गया।
याचिकाकर्ता के पिता की मृत्यु 1997 में 7 वर्ष की आयु में हो गई थी। वयस्क होने के बाद 2008 में अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। हालांकि, हरियाणा सरकार ने 1999 की नीति का हवाला देते हुए दावा खारिज कर दिया, जिसमें कर्मचारी की मृत्यु के बाद तीन साल की सीमा लागू की गई।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की नीति में कुछ भी गलत नहीं पाया। कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य परिवार को तत्काल सहायता प्रदान करना है।
जस्टिस मसीह द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया:
"अनुकंपा नियुक्ति के लिए निहित अधिकार के रूप में दावा किए जाने के संबंध में यह कहना पर्याप्त है कि उक्त अधिकार सेवा के दौरान मरने वाले कर्मचारी की सेवा की शर्त नहीं है, जिसे किसी भी प्रकार की जांच या चयन की प्रक्रिया के बिना आश्रित को दिया जाना चाहिए। यह ऐसी नियुक्ति है, जो विभिन्न मापदंडों की उचित और सख्त जांच के बाद दी जाती है, जिसका उद्देश्य किसी परिवार को अचानक आर्थिक तंगी से उबारना है, जिससे वे उभरती हुई आपातकालीन स्थिति से बाहर निकल सकें, जहां एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति मर गया, जिससे वे असहाय और शायद पैसे के बिना रह गए हैं। इसलिए अनुकंपा नियुक्ति अत्यधिक वित्तीय कठिनाई का सामना कर रहे मृतक कर्मचारी के परिवार को उबारने के लिए प्रदान की जाती है और रोजगार के बिना परिवार संकट का सामना करने में सक्षम नहीं होगा। यह किसी भी मामले में दावेदार द्वारा ऐसी अनुकंपा नियुक्ति के लिए नीति, निर्देश या नियमों में निर्धारित आवश्यकताओं को पूरा करने के अधीन होगा।"
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुकंपा नियुक्ति सामान्य नियम का अपवाद है।
आगे कहा गया,
"इसलिए ऐसी नीतियों का उद्देश्य परिवार को तत्काल सहायता प्रदान करना है। इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो आश्रित द्वारा दावा प्रस्तुत करने के लिए कर्मचारी की मृत्यु की तिथि से तीन वर्ष की अवधि निर्धारित की गई, जिसमें हरियाणा सरकार द्वारा जारी 1999 की नीति निर्देशों के अनुसार वयस्कता प्राप्त करना भी शामिल है, जिसे किसी भी मामले में अनुचित या अतार्किक नहीं कहा जा सकता, खासकर तब जब अनुकंपा नियुक्ति एक निहित अधिकार नहीं है।"
यद्यपि याचिकाकर्ता की नियुक्ति के लिए दावा अस्वीकार कर दिया गया, न्यायालय ने उसकी मां को एकमुश्त अनुग्रह राशि भुगतान के लिए सक्षम प्राधिकारी को अभ्यावेदन प्रस्तुत करने की अनुमति दी।
न्यायालय ने आदेश दिया कि अनुरोध पर छह सप्ताह के भीतर विचार किया जाए।
केस टाइटल: टिंकू बनाम हरियाणा राज्य