दक्षता और लाभ बढ़ाने के लिए सॉफ़्टवेयर ख़रीदने वाली कंपनी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत "उपभोक्ता" नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-11-14 04:54 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (13 नवंबर) को फैसला सुनाया कि लाभ कमाने से जुड़े 'व्यावसायिक उद्देश्य' से उत्पाद ख़रीदने वाले व्यक्ति को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत उपभोक्ता नहीं माना जा सकता।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने अपीलकर्ता-सॉफ़्टवेयर कंपनी द्वारा प्रतिवादी-विक्रेता के विरुद्ध दायर उपभोक्ता शिकायत खारिज करने का फ़ैसला बरकरार रखा, जिसमें अपीलकर्ता द्वारा अपनी व्यावसायिक प्रक्रियाओं के स्वचालन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले दोषपूर्ण सॉफ़्टवेयर लाइसेंस को बेचने का आरोप लगाया गया था।

अदालत ने कहा,

"इस मामले में न केवल शिकायतकर्ता कॉमर्शियल यूनिट है, बल्कि प्रतिवादी से वस्तुओं/सेवाओं (अर्थात् सॉफ्टवेयर) की खरीद कंपनी की उन प्रक्रियाओं को स्वचालित करने के उद्देश्य से की गई, जो लाभ सृजन से जुड़ी हैं, क्योंकि व्यावसायिक प्रक्रियाओं का स्वचालन न केवल व्यवसाय के बेहतर प्रबंधन के लिए किया जाता है, बल्कि लागत कम करने और लाभ को अधिकतम करने के लिए भी किया जाता है। इस प्रकार, हमारे विचार में वस्तुओं/सेवाओं (अर्थात् सॉफ्टवेयर) की खरीद का लेन-देन लाभ सृजन से जुड़ा है। इसलिए उस लेन-देन के आधार पर अपीलकर्ता को 1986 के अधिनियम की धारा 2(1)(डी) में परिभाषित उपभोक्ता नहीं माना जा सकता।"

यह निर्धारित करने के लिए परीक्षण कि वस्तुओं/सेवाओं की खरीद वाणिज्यिक गतिविधि के लिए थी या व्यक्तिगत उपयोग के लिए।

अदालत ने कहा,

"लेनदेन का प्रमुख उद्देश्य या मंशा क्या है, यह देखना ज़रूरी है, यानी क्या यह क्रेता(कों) और/या उसके/उनके लाभार्थी के लिए किसी प्रकार का लाभ कमाना है। यदि यह पाया जाता है कि वस्तुओं या सेवाओं की खरीद का प्रमुख उद्देश्य क्रेता के निजी उपयोग और उपभोग के लिए है, या किसी व्यावसायिक गतिविधि से जुड़ा नहीं है तो इस सवाल पर विचार करने की ज़रूरत नहीं है कि क्या ऐसी खरीदारी स्वरोज़गार के ज़रिए आजीविका कमाने के लिए है। हालांकि, जहां लेन-देन व्यावसायिक उद्देश्य से है, वहां इस बात पर विचार करना होगा कि क्या यह स्वरोज़गार के ज़रिए आजीविका कमाने के लिए है या नहीं।"

कोर्ट ने इस बात की आलोचनात्मक व्याख्या की कि एक स्व-नियोजित व्यक्ति उपभोक्ता क्यों हो सकता है, जबकि एक निगम इसी तरह के लेन-देन में यह नहीं कह रहा है कि "एक स्व-नियोजित व्यक्ति द्वारा आजीविका के लिए स्वयं के उपयोग हेतु खरीदी गई वस्तुएं इस स्पष्टीकरण के अंतर्गत आएंगी, भले ही उस व्यक्ति की गतिविधि अपनी आजीविका के उद्देश्य से लाभ अर्जित करना हो। लेकिन जहां कोई कंपनी अपनी प्रक्रियाओं को स्वचालित करने के लिए कोई सॉफ़्टवेयर खरीदती है, उसका उद्देश्य लाभ को अधिकतम करना होता है। इसलिए यह 1986 के अधिनियम की धारा 2(1)(डी) के स्पष्टीकरण के अंतर्गत नहीं आएगा।"

कानून को लागू करते हुए कोर्ट ने कहा,

"वस्तुओं/सेवाओं (अर्थात, सॉफ़्टवेयर) की खरीद के लेन-देन का लाभ सृजन से संबंध है। इसलिए उस लेन-देन के आधार पर अपीलकर्ता को 1986 के अधिनियम की धारा 2(1)(डी) में परिभाषित उपभोक्ता नहीं माना जा सकता।"

तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई।

Cause Title: M/S POLY MEDICURE LTD. VERSUS M/S BRILLIO TECHNOLOGIES PVT. LTD

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