सह-प्रतिवादी के खिलाफ काउंटर-क्लेम दाख़िल नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऑर्डर VIII रूल 6-A (CPC) के तहत काउंटर-क्लेम केवल वादी (Plaintiff) के खिलाफ ही दाख़िल किया जा सकता है, सह-प्रतिवादी (Co-defendant) के खिलाफ नहीं। इसी आधार पर कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें एक प्रतिवादी को सह-प्रतिवादी के खिलाफ काउंटर-क्लेम करने की अनुमति दी गई थी।
मामला क्या था?
वादी (Plaintiff) ने अपनी भाभी (प्रतिवादी संख्या-1) के खिलाफ एक समझौता-नामा (Agreement to Sell, 21 अक्टूबर 2011) को चुनौती देते हुए वाद दायर किया था।
यह समझौता प्रतिवादी संख्या-2 (खरीदार) के पक्ष में हुआ था।
मुक़दमे के दौरान प्रतिवादी संख्या-1 की मृत्यु हो गई, और गुजरात हाईकोर्ट के आदेश पर उसकी जगह सिटी सिविल कोर्ट, अहमदाबाद के नज़ीर (Nazir) को प्रतिनिधि बनाया गया।
कई साल बाद, जुलाई 2021 में, प्रतिवादी संख्या-2 ने अपने लिखित बयान में संशोधन कर काउंटर-क्लेम दाख़िल करने की कोशिश की, जिसमें उसने समझौते का विशेष निष्पादन (Specific Performance) और संपत्ति का बंटवारा माँगा।
ट्रायल कोर्ट ने अगस्त 2021 में इस आवेदन को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि यह बहुत देर से दाख़िल हुआ है, समय-सीमा (Limitation) पार हो चुकी है और काउंटर-क्लेम सह-प्रतिवादी के खिलाफ दाख़िल नहीं किया जा सकता।
लेकिन जनवरी 2023 में गुजरात हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश पलटते हुए काउंटर-क्लेम स्वीकार कर लिया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
वादी (Plaintiff) की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
रोहित सिंह बनाम बिहार राज्य (2006) के फैसले में साफ़ कहा गया है कि काउंटर-क्लेम केवल वादी के खिलाफ किया जा सकता है, सह-प्रतिवादी के खिलाफ नहीं।
यहाँ प्रतिवादी संख्या-2 ने काउंटर-क्लेम सह-प्रतिवादी (नज़ीर, जो मृतक प्रतिवादी संख्या-1 का प्रतिनिधि था) के खिलाफ किया था, इसलिए यह क़ानूनन मान्य नहीं है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि काउंटर-क्लेम मुद्दों (Issues) के तय होने से पहले दाख़िल होना चाहिए। इस मामले में प्रतिवादी संख्या-2 ने यह आवेदन 9 साल बाद और मुद्दे तय होने के 2 साल बाद किया था।
इसलिए हाईकोर्ट का आदेश ग़लत था और ट्रायल कोर्ट का आदेश सही था।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि:
सह-प्रतिवादी के खिलाफ काउंटर-क्लेम दाख़िल करना अवैध और अस्वीकार्य है।
देरी और प्रक्रिया के उल्लंघन के कारण भी काउंटर-क्लेम नहीं माना जा सकता।
अपील को मंज़ूरी दी गई और हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया गया।