सुप्रीम कोर्ट में ट्रिब्यूनल सुधार अधिनियम को चुनौती: याचिकाकर्ताओं ने कहा- 4 साल का कार्यकाल अपर्याप्त
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ट्रिब्यूनल सुधार अधिनियम 2021 की वैधता से संबंधित मद्रास बार एसोसिएशन मामले की सुनवाई की।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने देश भर के न्यायाधिकरणों के सदस्यों और अध्यक्षों के कार्यकाल में की गई कटौती से संबंधित मुद्दों पर सुनवाई की।
इससे पहले न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार को कमर्शियल ट्रिब्यूनल पर व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा था, क्योंकि कोर्ट का मत था कि अलग-अलग सेवानिवृत्ति मानदंड बहुत भ्रम पैदा कर रहे हैं।
याचिकाकर्ताओं की मुख्य दलीलें
गुरुवार को दातार ने ट्रिब्यूनल सदस्यों की सेवा की शर्तों से संबंधित सरकार द्वारा जारी किए गए कई अध्यादेशों का उल्लेख किया, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों के विपरीत बताते हुए याचिकाओं के समूह में चुनौती दी गई।
उन्होंने निम्नलिखित प्रावधानों को न्यायालय के पिछले फैसलों के विपरीत बताया:
1. ट्रिब्यूनल सदस्यों के लिए न्यूनतम 50 वर्ष की आयु की आवश्यकता।
2. अध्यक्ष पद के लिए दो व्यक्तियों के नाम की सिफारिश करने वाली खोज-सह-चयन समिति का प्रावधान।
3. ट्रिब्यूनल सदस्य/अध्यक्ष के लिए 4 साल का कार्यकाल।
दातार ने ज़ोर दिया कि संपत कुमार बनाम भारत संघ जैसे स्थापित मिसालों के अनुसार, ट्रिब्यूनल के सदस्यों और अध्यक्षों को न्यूनतम 5 साल का कार्यकाल दिया जाना चाहिए।
बॉम्बे ITAT एसोसिएशन की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट पोरस काका ने भी इस बात पर ज़ोर दिया कि ट्रिब्यूनल सदस्यों के कार्यकाल को 4 साल तक कम करना हानिकारक होगा।
उन्होंने रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि सभी ट्रिब्यूनलों में सभी सदस्यों के लिए रिटायरमेंट की आयु समान होनी चाहिए।
काका ने बलपूर्वक कहा कि हाल के अध्यादेशों के कारण ITAT जैसे ट्रिब्यूनलों में कार्यकाल कम हो गया, जिससे कानूनी पेशेवरों के लिए अध्यक्ष या सदस्य के रूप में पद लेना हतोत्साहित करने वाला हो गया।
"चार साल बहुत कम है। अगर आप उन्हें वापस कतार में खड़ा करते हैं तो देखिए संस्था में कितनी अराजकता पैदा होती है कितना नुकसान होता है। यह संस्था 1961 से है। निश्चित रूप से 4 साल से अधिक कार्यकाल होना चाहिए। फिर ट्रिब्यूनल के बाद उनके पेश होने पर प्रतिबंध लगा देना कोई भी वकील आगे नहीं आएगा, कोई भी पेशेवर आगे नहीं आएगा।"
खंडपीठ ने संबंधित रिट याचिका पर भी संक्षिप्त दलीलें सुनीं, जिसमें ITAT में चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) सदस्यों की पात्रता के बदले हुए नियमों को चुनौती दी गई। वकील ने ज़ोर दिया कि 2020-2021 के हालिया संशोधित नियमों के तहत 10 साल के अनुभव वाले वकीलों को सदस्य के रूप में नियुक्त किया जा सकता है लेकिन CA को 25 साल के अनुभव की आवश्यकता है, जबकि पहले दोनों के बीच समानता थी।
अन्य हस्तक्षेपकर्ताओ द्वारा भी संक्षिप्त दलीलें पेश की गईं।