सरकारी आदेश में किए गए बदलावों को स्थापित वरिष्ठता रैंकिंग में बदलाव के लिए पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी प्रतिष्ठान में किसी कर्मचारी की वरिष्ठता तय करने वाले सरकारी आदेश (जी.ओ.) में बाद में संशोधन करके प्रतिष्ठान में काम करने वाले पूरे कैडर की सीनियरिटी को प्रभावित नहीं किया जा सकता।
जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि जी.ओ. (जिसके आधार पर किसी प्रतिष्ठान में वरिष्ठता निर्धारित की गई) में किए गए संशोधन को पूर्वव्यापी रूप से लागू करने से पूरे कैडर की वरिष्ठता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।
अदालत ने कहा,
“यदि किसी सरकारी आदेश को पहले के सरकारी आदेश के स्पष्टीकरण की प्रकृति का माना जाता है तो इसे पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जा सकता है। इसके विपरीत यदि किसी बाद के सरकारी आदेश को पहले के सरकारी आदेश का संशोधन माना जाता है तो इसका आवेदन भावी होगा, क्योंकि इसके पूर्वव्यापी आवेदन के परिणामस्वरूप निहित अधिकारों को वापस ले लिया जाएगा, जो कानून में अस्वीकार्य है और इसके लिए वसूली भी की जा सकती है।”
विवाद अपीलकर्ता को सेवा में शामिल होने की तिथि से नहीं बल्कि कुशल ग्रेड में उन्नयन/पदोन्नति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करने से संबंधित है। अपीलकर्ता को 1998 में अर्ध-कुशल ग्रेड में शामिल किया गया, 1998 में कुशल ग्रेड में पदोन्नत किया गया था। 2008 में ही अत्यधिक कुशल ग्रेड में पदोन्नत किया गया, जबकि इसी तरह की स्थिति वाले अन्य निजी प्रतिवादी जिन्हें अपीलकर्ता के साथ शामिल किया गया, उन्हें 2003 में ही अत्यधिक कुशल ग्रेड में पदोन्नत किया गया।
इसलिए अपीलकर्ता ने निजी प्रतिवादियों को दी गई वरिष्ठता के साथ समानता का दावा किया, जिन्हें उसी वर्ष अपीलकर्ता के साथ शामिल किया गया।
अपीलकर्ता की वरिष्ठता वर्ष 2002 में जारी जी.ओ. के आधार पर निर्धारित की गई, जिसमें कहा गया कि कुशल ग्रेड में वरिष्ठता को कुशल ग्रेड में पदोन्नति की तिथि से माना जाना चाहिए, न कि अर्ध-कुशल ग्रेड में शामिल होने/प्रवेश की तिथि से।
अपनी दलील के समर्थन में कि उनकी वरिष्ठता को नियुक्ति की तिथि से माना जाना चाहिए न कि उन्नयन की तिथि से अपीलकर्ता ने 2015 में जारी एक अन्य सरकारी आदेश का हवाला दिया, जिसने 2002 के सरकारी आदेश को संशोधित किया था। वर्ष 1992 में जारी सरकारी आदेश को बहाल किया था, जिसके अनुसार वरिष्ठता के निर्धारण की प्रासंगिक तिथि प्रारंभिक नियुक्ति की तिथि होगी न कि कुशल ग्रेड में उन्नयन/पदोन्नति की तिथि।
संक्षेप में, अपीलकर्ता ने दलील दी कि 2015 में जारी सरकारी आदेश को पूर्वव्यापी प्रभाव दिया जाना चाहिए, जिससे उसकी वरिष्ठता प्रारंभिक नियुक्ति की तिथि से निर्धारित की जा सके।
अपीलकर्ता का तर्क खारिज करते हुए जस्टिस संदीप मेहता द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि 2002 के पहले के सरकारी आदेश में 2015 के सरकारी आदेश के माध्यम से किए गए संशोधन को पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं दिया जा सकता, जिससे पूरी वरिष्ठता सूची को प्रभावित न किया जा सके, जो 2002 के सरकारी आदेश के आधार पर तय की गई थी, जो एक दशक से लागू है।
न्यायालय ने कहा,
“हालांकि, 4 अगस्त, 2015 के सरकारी आदेश के माध्यम से जारी किया गया स्पष्टीकरण पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होता, क्योंकि उक्त सरकारी आदेश में विशेष रूप से प्रावधान किया गया कि “इसके बाद” औद्योगिक प्रतिष्ठानों के संबंध में वरिष्ठता 4 नवंबर, 1992 के सरकारी आदेश के प्रासंगिक खंड द्वारा शासित होगी।”
श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय और अन्य बनाम डॉ. मनु और अन्य के मामले से संकेत लेते हुए न्यायालय ने माना कि संशोधित 2015 के सरकारी आदेश को पूर्वव्यापी रूप से लागू करना अस्वीकार्य है।
अदालत ने कहा,
"इन सिद्धांतों को इस मामले में लागू करते हुए हमारा मानना है कि 4 अगस्त, 2015 के बाद के सरकारी आदेश को केवल स्पष्टीकरण के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता। इसलिए इसे पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता। उक्त सरकारी आदेश ने 4 नवंबर, 1992 के पहले के सरकारी आदेश को पुनर्जीवित करके औद्योगिक प्रतिष्ठानों में वरिष्ठता को नियंत्रित करने वाली स्थिति को मौलिक रूप से संशोधित किया। 24 दिसंबर, 2002 और 13 जनवरी, 2003 के आदेशों/सर्कुलर को हटा दिया, जो एक दशक से भी अधिक समय से लागू थे। इसलिए 4 अगस्त, 2015 के सरकारी आदेश को पूर्वव्यापी प्रभाव देने से पूरे कैडर की वरिष्ठता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।"
न्यायालय ने तर्क दिया कि वरिष्ठता सूची में देरी से बदलाव नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे उन कर्मचारियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जिनकी वरिष्ठता और रैंक इस बीच निर्धारित की गई। न्यायालय ने कहा कि 4 अगस्त 2015 के सरकारी आदेश की प्रयोज्यता अपीलकर्ता के लाभ के लिए नहीं हो सकती, क्योंकि इसका संचालन भावी है।
न्यायालय ने कहा,
“इस प्रकार, बहुत पानी बह चुका है। 2015 में जारी किए गए सरकारी आदेश को पूर्वव्यापी रूप से लागू करने से मुकदमेबाजी की बाढ़ आ जाएगी। कई कर्मचारियों की वरिष्ठता में बाधा उत्पन्न होगी, जिससे उन्हें गंभीर पूर्वाग्रह और नाराज़गी होगी, क्योंकि इससे वरिष्ठता, रैंक और पदोन्नति के बारे में उनके क्रिस्टलीकृत अधिकारों में बाधा उत्पन्न होगी, जो बीच की अवधि के दौरान उन्हें प्राप्त हुए होंगे। इतनी लंबी अवधि के बाद वरिष्ठता सूची में बदलाव करना उन कर्मचारियों के साथ पूरी तरह से अन्याय होगा, जो बिना किसी गलती के अनिश्चितता के चक्रव्यूह में फंस सकते हैं और पूर्वव्यापी रूप से अपने वरिष्ठता अधिकारों को खो सकते हैं।”
तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: वी. विंसेंट वेलंकन्नी बनाम भारत संघ और अन्य, सिविल अपील नंबर 8617/2013