क्या हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह को अमान्य घोषित किए जाने पर गुजारा भत्ता दिया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार
सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार करेगा कि क्या विवाह को अमान्य घोषित किए जाने पर गुजारा भत्ता दिया जा सकता है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की खंडपीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act (HMA)) की धारा 24 और 25 की प्रयोज्यता की व्याख्या करने में विभिन्न खंडपीठों के निर्णयों में परस्पर विरोधी विचार सामने आए हैं। इस मुद्दे को सुलझाने के लिए 3 जजों की पीठ गठित की जानी चाहिए।
एक्ट की धारा 24 पति-पत्नी के बीच HMA के तहत लंबित मुकदमे के दौरान अंतरिम भरण-पोषण का प्रावधान करती है। धारा 25 स्थायी गुजारा भत्ता और भरण-पोषण का प्रावधान करती है।
HMA की धारा 11 के अनुसार, यदि विवाह में द्विविवाह का तत्व है; पति-पत्नी संबंध की निषिद्ध डिग्री के भीतर हैं या दोनों पक्ष अधिनियम की धारा 5 के तहत एक-दूसरे के सपिंड हैं तो विवाह अमान्य घोषित किया जाता है।
आगे कहा गया,
“पक्षों की ओर से उपस्थित एडवोकेट ने बार में कहा कि इन मामलों पर तीन जजों की पीठ द्वारा विचार किए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि HMA की धारा 24 और 25 की प्रयोज्यता पर परस्पर विरोधी विचार हैं कि क्या विवाह को अमान्य घोषित किए जाने की स्थिति में गुजारा भत्ता दिया जा सकता है।”
न्यायालय ने विवाह को अमान्य घोषित किए जाने की स्थिति में गुजारा भत्ता दिए जाने के पक्ष में निम्नलिखित निर्णयों को नोट किया:
1. यमुनाबाई अनंतराव अधव बनाम अनंतराव शिवराम अधव और अन्य (1988) 1 एससीसी 530।
2. अब्बायोला रेड्डी बनाम पद्मम्मा एआईआर 1999 एपी 19।
3. नवदीप कौर बनाम दिलराज सिंह (2003) 1 एचएलआर 100।
4. भाऊसाहेब @ संधू पुत्र रागुजी मगर बनाम लीलाबाई पत्नी भाऊसाहेब मगर (2004) एआईआर बॉम. 283(FB)।
5. सविताबेन सोमाभाई भाटिया बनाम गुजरात राज्य और अन्य (2005) 3 एससीसी 636।
इसके विपरीत, निम्नलिखित निर्णय विवाह को शून्य घोषित करने पर गुजारा भत्ता देने के विरुद्ध हैं:
1. चंद धवन बनाम जवाहरलाल धवन (1993) 3 एससीसी 406।
2. रमेशचंद्र रामप्रतापजी डागा बनाम रामेश्वरी रमेशचंद्र डागा (2005) 2 एससीसी 33।
न्यायालय ने इस मामले की जांच के लिए 3 जजो की पीठ गठित करने के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष अभिलेख प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
कहा गया,
“तदनुसार, उचित आदेश पारित करने के लिए कागजात सीजेआई के समक्ष प्रस्तुत किए जाएं।”
केस टाइटल: सुखदेव सिंह बनाम सुखबीर कौर सिविल अपील संख्या 2536/2019