BREAKING| सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के 65% आरक्षण कानून निरस्त करने का फैसला बरकरार रखा
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (29 जुलाई) को बिहार राज्य द्वारा दायर याचिका स्वीकार की। उक्त याचिका में पटना हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जनजातियों (एसटी), अनुसूचित जातियों (एससी) और अत्यंत पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को 50% से बढ़ाकर 65% करने वाले बिहार संशोधन कानून रद्द कर दिया गया था।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने बिहार की विशेष अनुमति याचिका में अपील करने की अनुमति देने पर सहमति जताई।
बिहार राज्य के लिए सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध किया। दीवान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ से संबंधित इसी तरह के कानून में अंतरिम आदेश पारित किया।
हालांकि, पीठ ने अंतरिम राहत देने से इनकार किया और मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। दीवान ने अंतरिम राहत के लिए पीठ को मनाने की कोशिश की और कम से कम अंतरिम आवेदनों पर नोटिस जारी करने पर जोर दिया।
सीजेआई ने फिर भी कहा कि अंतरिम राहत अस्वीकार की जा रही है।
दीवान ने आगे कहा कि अंतरिम प्रार्थना पर गहन विचार की आवश्यकता है। दीवान ने कहा कि यदि अंतरिम आवेदन पर नोटिस जारी किया जाता है तो प्रार्थना को बंद नहीं किया जाएगा और न्यायालय बाद के चरण में भी इस मुद्दे पर विचार कर सकता है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर बड़ी पीठ द्वारा भी विचार करने की आवश्यकता हो सकती है।
पीठ ने जब दोहराया कि अंतरिम राहत को अस्वीकार कर दिया गया तो दीवान ने स्पष्टीकरण मांगा कि इस स्तर पर अंतरिम राहत अस्वीकार की जा रही है। पीठ ने इस दलील पर सहमति जताई।
मामलों को सितंबर के लिए सूचीबद्ध करते हुए सीजेआई ने आदेश में कहा,
"वर्तमान चरण में कोई अंतरिम राहत नहीं दी जाती है।"
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि रोजगार के लिए साक्षात्कार प्रक्रिया कानून के अनुसार चल रही है।
चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस हरीश कुमार की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 20 जून को जनहित याचिका पर बिहार आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 रद्द कर दिया।
2023 में किए गए जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों के आधार पर अत्यंत पिछड़े वर्गों (ईबीसी) के लिए कोटा मौजूदा 18% से बढ़ाकर 25% कर दिया गया; पिछड़े वर्गों (बीसी) के लिए 12% से 18%; अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए 16% से 20%; और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए कोटा दोगुना कर दिया गया है, 1% से 2% के लिए राज्य ने संशोधन पारित किए।
हाईकोर्ट ने संशोधनों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16 (4) के तहत समानता का उल्लंघन करने वाला और अधिकारहीन बताते हुए खारिज कर दिया। अनुच्छेद 15(4) राज्य को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े नागरिकों के किसी भी वर्ग की उन्नति के लिए कोई विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है तथा अनुच्छेद 16 (4) में प्रावधान है कि राज्य किसी भी पिछड़े वर्ग के लिए पद आरक्षित कर सकता है, जिनका राज्य की सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
न्यायालय ने संशोधनों को असंवैधानिक करार देते हुए उन्हें रद्द करने के लिए निम्नलिखित कारण बताए: (क) आरक्षण के लिए 50% की अधिकतम सीमा है, (ख) आरक्षण पिछड़े वर्गों की जनसंख्या के अनुपात पर आधारित था (आनुपातिक आरक्षण), (ग) राज्य/प्रतिवादी ने संशोधन अधिनियमों के तहत आरक्षण बढ़ाने से पहले कोई विश्लेषण या गहन अध्ययन नहीं किया।
केस टाइटल: बिहार राज्य बनाम गौरव कुमार एसएलपी (सी) नंबर 014086 - / 2024