गैर-मुस्लिमों को वक्फ बनाने से रोकना प्रथम दृष्टया मनमाना नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि गैर-मुस्लिम नागरिक वक्फ मानी जाने वाली संपत्ति दान नहीं कर सकते तो यह मनमाना नहीं है, क्योंकि वे एक धर्मार्थ ट्रस्ट बनाकर ऐसा कर सकते हैं।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की धारा 3(1)(आर) सहित कुछ प्रावधानों पर रोक लगाते हुए अंतरिम आदेश पारित किया, जिसके तहत किसी व्यक्ति को संपत्ति वक्फ के रूप में समर्पित करने के लिए कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का पालन करना आवश्यक है।
हालांकि, इसने मूल वक्फ अधिनियम, 1955 से धारा 104 को हटाने पर रोक लगाने से इस आधार पर इनकार किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए तर्क स्वयं-विरोधाभासी हैं। इसने कहा कि एक ओर, उन्होंने तर्क दिया कि वक्फ केवल इस्लामी धर्म के लिए है। लेकिन दूसरी ओर, वे एक ऐसा प्रावधान चाहते हैं, जो गैर-मुस्लिमों को भी वक्फ के रूप में संपत्ति दान करने की अनुमति दे।
खंडपीठ ने कहा,
"एक ओर, याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि वक्फ केवल इस्लामी धर्म के लिए है। यदि ऐसा है तो उस प्रावधान को हटाना, जो इस्लाम न मानने वाले व्यक्ति को वक्फ के लिए अपनी संपत्ति दान करने की अनुमति देता है, मनमाना नहीं कहा जा सकता, क्योंकि याचिकाकर्ताओं के अनुसार भी वक्फ केवल इस्लामी धर्म के लिए है।"
अदालत ने कहा कि वैसे भी गैर-मुस्लिम नागरिक अभी भी अपनी संपत्ति किसी ट्रस्ट को दान कर सकते हैं।
आगे कहा गया,
"किसी भी मामले में यदि ऐसा कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति दान करना चाहता है तो वह इसे किसी ट्रस्ट को देकर या दान करके या मूल वक्फ अधिनियम की धारा 104 में शामिल किसी भी उद्देश्य के लिए ट्रस्ट बनाकर ऐसा कर सकता है। इसके अलावा, ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त संशोधन संशोधित वक्फ अधिनियम की धारा 3(आर) के तहत वक्फ की परिभाषा के अनुरूप बनाने के लिए लाया गया, जो यह प्रावधान करता है कि वक्फ केवल उस व्यक्ति द्वारा बनाया जा सकता है, जो यह दर्शाता या प्रदर्शित करता है कि वह कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा है। इसलिए हम प्रथम दृष्टया मूल वक्फ अधिनियम की धारा 104 को हटाने को मनमाना नहीं पाते हैं।"