BREAKING| बार काउंसिल एनरॉलमेंट फीस के रूप में एडवोकेट एक्ट की धारा 24 के तहत निर्दिष्ट राशि से अधिक नहीं ले सकते : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (30 जुलाई) को कहा कि सामान्य श्रेणी के वकीलों के लिए एनरॉलमेंट फीस 750 रुपये से अधिक नहीं हो सकता तथा अनुसूचित जाति/जनजाति श्रेणी के वकीलों के लिए 125 रुपये से अधिक नहीं हो सकता।
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि राज्य बार काउंसिल "विविध फीस" या अन्य फीस के मद में ऊपर निर्दिष्ट राशि से अधिक कोई राशि नहीं ले सकते। राज्य बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) एडवोकेट एक्ट (Advocate Act) की धारा 24(1)(एफ) के तहत निर्दिष्ट राशि से अधिक वकीलों को रोल में शामिल करने के लिए कोई राशि नहीं ले सकते।
एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 24(1)(एफ) के तहत राज्य बार काउंसिल को देय एनरॉलमेंट फी 600 रुपये तथा सामान्य श्रेणी के वकीलों के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को 150 रुपये निर्धारित किया गया। एससी/एसटी वर्ग के वकीलों के लिए यह राशि क्रमशः 100 रुपये और 25 रुपये है।
न्यायालय ने माना कि चूंकि संसद ने नामांकन शुल्क निर्दिष्ट किया। इसलिए बार काउंसिल इसका उल्लंघन नहीं कर सकती।
साथ ही न्यायालय ने घोषित किया कि निर्णय का केवल भावी प्रभाव होगा, जिसका अर्थ है कि बार काउंसिल को अब तक वैधानिक राशि से अधिक एकत्र किए गए एनरॉलमेंट फी को वापस करने की आवश्यकता नहीं है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ के समक्ष विभिन्न राज्य बार काउंसिल द्वारा वसूले जा रहे अलग-अलग एनरॉलमेंट फी को अत्यधिक बताते हुए चुनौती देने वाली याचिकाओं का एक समूह था। इस मुद्दे की मुख्य याचिका का शीर्षक गौरव कुमार बनाम भारत संघ है।
याचिकाओं के इस समूह में एक ही सवाल उठाया गया कि क्या एनरॉलमेंट फी के रूप में अत्यधिक फीस वसूलना एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 24(1) का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह सुनिश्चित करना BCI का कर्तव्य है कि अत्यधिक एनरॉलमेंट फी न वसूला जाए।
ध्यान रहे कि 2023 में 5 जजों की संविधान पीठ ने अखिल भारतीय बार परीक्षा की वैधता बरकरार रखते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया से यह भी सुनिश्चित करने को कहा था कि एनरॉलमेंट फी "दमनकारी" न हो जाए।
जस्टिस एस.के. कौल की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अपने निर्णय (बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम बोनी फोई लॉ कॉलेज एवं अन्य) में कहा,
"हमारे पास इस दलील से उत्पन्न चेतावनी भी है कि विभिन्न राज्य बार काउंसिल एनरॉलमेंट के लिए अलग-अलग फी ले रहे हैं। यह ऐसी बात है जिस पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया को ध्यान देने की आवश्यकता है, जिसके पास यह देखने की शक्ति नहीं है कि समान पैटर्न का पालन किया जाए और बार में शामिल होने वाले युवा छात्रों की दहलीज पर शुल्क दमनकारी न हो जाए।"
केस टाइटल: गौरव कुमार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 352/2023 और इससे जुड़े मामले।