25 लाख की बैंक धोखाधड़ी मामले में समझौते के बाद सुप्रीम कोर्ट FIR रद्द की, कहा- अब कोई सार्वजनिक हित नहीं

Update: 2025-05-31 06:49 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एन.एस. ज्ञानेश्वरन व अन्य बनाम पुलिस निरीक्षक व अन्य मामले में 25.89 लाख की बैंक धोखाधड़ी से जुड़ी आपराधिक कार्यवाही रद्द की। कोर्ट ने कहा कि मामला पूरी तरह सुलझ चुका है और अब ट्रायल जारी रखने का कोई लाभ नहीं होगा।

यह मामला विनायक कॉरपोरेशन को स्वीकृत ऋण को धोखाधड़ी से डायवर्ट कर बैंक को 25.89 लाख का नुकसान पहुंचाने के आरोपों से जुड़ा था।

बैंक की शिकायत पर CBI ने FIR दर्ज कर नौ आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी जिनमें याचिकाकर्ता भी शामिल थे। आरोप आईपीसी की धारा 120B, 420, 468, 471 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत थे।

बाद में प्रमुख आरोपी ने बैंक से 52.79 लाख में वन टाइम सेटलमेंट (OTS) किया।

इसके आधार पर याचिकाकर्ताओं ने मद्रास हाईकोर्ट में केस रद्द करने की याचिका दी, लेकिन हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि सिर्फ समझौते के आधार पर आपराधिक मामला रद्द नहीं किया जा सकता जब प्रथम दृष्टया आरोप बनते हों।

इसके खिलाफ याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की।

याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि बैंक का पूरा बकाया चुका दिया गया। अब कोई बकाया नहीं है। ऐसे में आपराधिक कार्यवाही जारी रखना अनुचित होगा।

साथ ही यह भी दलील दी गई कि आरोपी सरकारी कर्मचारी नहीं हैं इसलिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम लागू नहीं होता।

राज्य पक्ष ने तर्क दिया कि गंभीर आरोपों के चलते समझौता आपराधिक कार्यवाही रद्द करने का आधार नहीं बन सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब जब विवाद पूरी तरह सुलझ चुका है और बैंक की ओर से कोई आपत्ति नहीं है तो केस चलाने का कोई तर्क नहीं रह जाता।

कोर्ट ने यह भी कहा कि इसी मामले में अन्य सह-आरोपियों के खिलाफ भी कार्यवाही पहले ही रद्द हो चुकी है, इसलिए याचिकाकर्ता भी समान लाभ के हकदार हैं।

अंत में कोर्ट ने कहा,

“जब मामला पूरी तरह व्यापारिक हो और अपराध के बाद सुलझ चुका हो तथा कोई सार्वजनिक हित शेष न हो तो आपराधिक कार्यवाही को समाप्त किया जा सकता है।”

इसके साथ ही कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और केस को पूरी तरह रद्द कर दिया।

टाइटल: एन.एस. ज्ञानेश्वरन व अन्य बनाम पुलिस निरीक्षक व अन्य

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