सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित AoR सीनियर डेजिग्नेशन के बारे में क्लाइंट को सूचित और रजिस्ट्री को अनुपालन रिपोर्ट किए बिना उपस्थित नहीं हो सकते: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस बात पर जोर दिया कि सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AoR) को अपने क्लाइंट को उनके डेजिग्नेशन के बारे में सूचित करना चाहिए और रजिस्ट्री को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए, जिसमें पुष्टि की गई हो कि उनके क्लाइंट के प्रतिनिधित्व के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की गई।
कोर्ट ने कहा कि इस दायित्व का पालन करने में विफलता ऐसे सीनियर एडवोकेट को सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के नियम 18, आदेश IV के अनुसार न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने से रोक देगी।
जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वे AoR को इस आवश्यकता के बारे में सूचित करें, जिन्होंने नियम 18 का अनुपालन नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे एडवोकेट तब तक सीनियर एडवोकेट के रूप में उपस्थित नहीं हो सकते, जब तक वे नियम के तहत अपने दायित्वों को पूरा नहीं करते।
न्यायालय ने कहा,
“इस नियम में कई दायित्व शामिल हैं। पहला यह है कि एडवोकेट को सीनियर एडवोकेट के रूप में अपने पदनाम के बारे में पक्षों को सूचित करना होगा। दूसरा दायित्व रजिस्ट्री को यह रिपोर्ट करना है कि सभी मामलों में उनके द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए पक्षों को इस बारे में सूचित कर दिया गया। उनके द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए सभी मामलों में पक्षों के न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए आवश्यक व्यवस्था की गई। इस प्रकार, एक एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड जिसे सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित किया गया, वह किसी भी मामले में सीनियर एडवोकेट के रूप में तब तक उपस्थित नहीं हो सकता, जब तक कि वह रजिस्ट्री को 2013 के नियमों के आदेश IV के नियम 18 के अनुपालन की रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करता है।”
सुप्रीम कोर्ट रूल्स, 2013 के अनुसार, AoR एकमात्र वकील होता है, जो वादियों की ओर से दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने और उन्हें दाखिल करने के लिए अधिकृत होता है। एडवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 16 के तहत एक बार सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित होने के बाद वे वकालतनामा दाखिल नहीं कर सकते, AoR के बिना उपस्थित नहीं हो सकते, या सीधे क्लाइंट से ब्रीफ स्वीकार नहीं कर सकते। न्यायालय में अपना प्रतिनिधित्व जारी रखने के लिए वादियों को ऐसे मामलों में एक नया AoR नियुक्त करना चाहिए।
अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि रजिस्ट्री अक्सर वादियों को वैकल्पिक व्यवस्था के नोटिस जारी करती है, जब उनका AoR सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित होता है। न्यायालय के अनुसार, इस प्रथा के कारण मामलों के निपटान में देरी हुई, क्योंकि ऐसे मामले हैं, जिनमें नोटिस तामील नहीं किए गए। न्यायालय ने इस दृष्टिकोण के बारे में चिंता व्यक्त की और इस बात पर जोर दिया कि जिम्मेदारी न्यायालय की नहीं, बल्कि AoR की है।
न्यायालय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के आदेश IV के नियम 18 में यह अनिवार्य किया गया कि सीनियर एडवोकेट को अपने मुवक्किलों को उनके डेजिग्नेशन के बारे में सूचित करना चाहिए। रजिस्ट्री को रिपोर्ट करना चाहिए कि प्रतिनिधित्व के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की गई।
न्यायालय ने आगे कहा कि यह दायित्व 2013 के नियमों के लागू होने से पहले भी मौजूद था। इसने पापन्ना एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य के निर्णय का हवाला दिया, जिसने स्थापित किया कि अपने मुवक्किलों को सूचित करना और उनसे वैकल्पिक व्यवस्था करने का अनुरोध करना सीनियर एडवोकेट का पेशेवर कर्तव्य है।
न्यायालय ने कहा,
“इस प्रकार, आदेश 4 के नियम 18 के नियम पुस्तिका में आने से पहले ही इस न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में निर्धारित किया कि सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित वकील का यह पेशेवर कर्तव्य है कि वह अपने सभी मुवक्किलों को इस तथ्य के बारे में सूचित करे और उनसे रिकॉर्ड पर मौजूद किसी अन्य एडवोकेट को नियुक्त करने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने का अनुरोध करे।
न्यायालय ने कहा कि इस न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पक्षों को सूचित करना इस न्यायालय के कर्तव्य का हिस्सा नहीं है। न्यायालय ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को 27 फरवरी, 2025 तक एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जिसमें 1 जनवरी, 2024 से सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित AoR द्वारा आदेश IV के नियम 18 के अनुपालन का विवरण दिया गया हो। रिपोर्ट में उन वकीलों के नाम शामिल होने चाहिए, जो नियम और पापन्ना मामले में स्थापित मिसाल का पालन करने में विफल रहे हैं।
मामले को 28 फरवरी, 2025 को आगे के विचार के लिए सूचीबद्ध किया गया।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि हालांकि यह ऐसे परिवर्तनों के बारे में क्लाइंट को सूचित करने के लिए बाध्य नहीं है, लेकिन यह उन मामलों में नोटिस जारी करने का विवेक रखता है, जहां वादियों का प्रतिनिधित्व नहीं किया जाता है।
न्यायालय ने पहले रजिस्ट्री द्वारा उन वादियों को नोटिस जारी करने की प्रथा पर स्पष्टीकरण मांगा, जिनके AoR को सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित किया गया। न्यायालय ने उन बार-बार के उदाहरणों पर चिंता व्यक्त की, जहां AoR द्वारा अपने मुवक्किलों को सूचित न करने के कारण नोटिस जारी किए गए, जिसके कारण मामलों में देरी हुई।
केस टाइटल- मध्य प्रदेश राज्य बनाम दिलीप