GST Act के तहत गिरफ्तारी के खिलाफ अग्रिम जमानत आवेदन सुनवाई योग्य: सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले निर्णय खारिज किए

सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले निर्णयों को खारिज किया, जिनमें कहा गया था कि माल और सेवा कर अधिनियम (GST Act) के तहत अपराधों के संबंध में अग्रिम जमानत आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस बेला त्रिवेदी की तीन जजों की पीठ ने गुजरात राज्य बनाम चूड़ामणि परमेश्वरन अय्यर और अन्य तथा भारत भूषण बनाम जीएसटी खुफिया महानिदेशक, नागपुर क्षेत्रीय इकाई अपने जांच अधिकारी के माध्यम से मामले में दो जजों की पीठ के निर्णयों को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि GST Act के तहत समन किए गए व्यक्ति को अग्रिम जमानत आवेदन दायर नहीं किया जा सकता और संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दायर करना ही एकमात्र उपाय है।
वर्तमान मामले (राधिका अग्रवाल बनाम भारत संघ) में न्यायालय GST Act और Custom Act के तहत गिरफ्तारी प्रक्रिया से संबंधित कई मुद्दों पर विचार कर रहा था।
सीजेआई खन्ना द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि गिरफ्तारी की आशंका होने पर अग्रिम जमानत देने की शक्ति उत्पन्न होती है। दंड प्रक्रिया संहिता के तहत न्यायालयों में निहित यह शक्ति, व्यक्तियों को गिरफ्तार होने से बचाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की पुष्टि करती है।
बता दें, गुरबख्श सिंह सिब्बिया बनाम पंजाब राज्य (1980) में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जब कोई व्यक्ति गिरफ्तारी की आशंका की शिकायत करता है और सुरक्षा के आदेश के लिए संपर्क करता है तो ऐसे आवेदन पर जब ऐसे तथ्यों पर आधारित हो जो अस्पष्ट या सामान्य आरोप नहीं हैं, तो अदालत को गिरफ्तारी के खतरे और इसकी गंभीरता का मूल्यांकन करने के लिए विचार करना चाहिए।
निर्णय में कहा गया,
"हम यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि अग्रिम जमानत देने का अधिकार तब उत्पन्न होता है, जब गिरफ्तारी की आशंका होती है। यह आवश्यक नहीं है कि अग्रिम जमानत के लिए आवेदन केवल FIR दर्ज होने के बाद ही किया जाना चाहिए, जब तक कि तथ्य स्पष्ट हों और गिरफ्तारी की आशंका के लिए उचित आधार हो। इस सिद्धांत की पुष्टि हाल ही में सुशीला अग्रवाल और अन्य बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) और अन्य में इस न्यायालय के पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा की गई। GST Act के संदर्भ में इस न्यायालय के कुछ निर्णय जो उपरोक्त अनुपात के विपरीत हैं, उन्हें बाध्यकारी नहीं माना जाना चाहिए।"
न्यायालय ने यह भी माना कि अग्रिम जमानत प्रावधान Custom Act के तहत अपराधों पर भी लागू होता है। न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय बनाम दीपक महाजन, (1994) 3 एससीसी 440 के निर्णय पर भरोसा करते हुए कहा कि धारा 438 और 439 के तहत अग्रिम जमानत के लिए आवेदन पर विचार करते समय मामले का पंजीकरण और केस डायरी की प्रविष्टियां अनिवार्य नहीं हैं।
केस टाइटल: राधिका अग्रवाल बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी. (सीआरएल.) नंबर 336/2018 (और संबंधित मामले)