राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: न्यायिक डिक्री सिर्फ दिखावा नहीं, तकनीकी आधार पर राहत देने से इनकार नहीं कर सकता कोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सक्षम न्यायालय द्वारा पारित डिक्री को केवल कागज़ी दस्तावेज़ या दीवार पर टंगी शो-पीस बनाकर नहीं छोड़ा जा सकता। निष्पादन न्यायालय तकनीकी कारणों के आधार पर वास्तविक राहत से इनकार नहीं कर सकता।
जस्टिस फ़र्ज़न्द अली ने कहा,
“डिक्री का उद्देश्य महज़ कागज़ पर बने रहना नहीं है। इसे वास्तविकता में लागू किया जाना चाहिए ताकि सफल पक्षकार को वह संपूर्ण लाभ मिल सके, जो निर्णय और डिक्री में निहित है। अन्यथा, पूरा न्यायिक प्रक्रिया ही निरर्थक हो जाएगी।”
मामला ऐसे समझौता आधारित डिक्री का है, जिसके तहत याचिकाकर्ता को दुकान की पूर्ण स्वामित्व और कब्ज़ा दिया जाना है और प्रतिवादी पक्षों को उसके नाम पर पट्टा जारी कराने में सहयोग करना है। याचिकाकर्ता को संपत्ति का कब्ज़ा तो मिल गया लेकिन कोई स्वामित्व दस्तावेज़ नहीं दिया गया, जिससे उसे पट्टा प्राप्त करने में कठिनाई हुई।
इस स्थिति में याचिकाकर्ता ने CPC की धारा 151 के तहत आवेदन देकर प्रतिवादियों से गिफ्ट डीड निष्पादित कराने की मांग की। निष्पादन न्यायालय ने यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि कब्ज़ा पहले ही सौंपा जा चुका है। यदि नगर पालिका पट्टा जारी नहीं कर रही है तो यह विवाद याचिकाकर्ता और नगर पालिका के बीच है।
हाईकोर्ट ने इस आदेश को स्पष्ट त्रुटि करार दिया और कहा कि यह मामला केवल प्रतीकात्मक अनुपालन का है। कब्ज़े के बिना स्वामित्व दस्तावेज़ देना अर्थहीन है, क्योंकि ऐसे में न तो स्वामित्व का वास्तविक हस्तांतरण हो सकता है और न ही याचिकाकर्ता कोई अधिकार इस्तेमाल कर सकती है।
न्यायालय ने CPC की धारा 151 की महत्ता पर बल देते हुए कहा कि यह प्रावधान अदालतों को न्याय के प्रवाह को बनाए रखने हेतु निहित शक्तियां देता है। इन शक्तियों का प्रयोग करके अदालत आवश्यक सहायक या परिणामी आदेश पारित कर सकती है ताकि डिक्री सार्थक हो सके। अन्यथा, डिक्री की पवित्रता ही नष्ट हो जाएगी और वादी व्यर्थ की मुकदमेबाज़ी में फंस जाएगा।
हाईकोर्ट ने कहा कि जब समझौता डिक्री में प्रतिवादियों के सहयोग से दस्तावेज़ निष्पादित करना ही अपेक्षित है तो निष्पादन न्यायालय अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता। तकनीकी कारणों से राहत से इनकार करना न्याय से वंचित करना है और डिक्री को निरर्थक बना देना है।
अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए कि प्रतिवादी याचिकाकर्ता के पक्ष में विधिवत पंजीकृत गिफ्ट डीड निष्पादित करें और उसे नगर पालिका में प्रस्तुत कर अलग से पट्टा जारी कराया जाए। यदि प्रतिवादी या स्थानीय निकाय इसमें देरी करते हैं तो यह डिक्री की अवहेलना मानी जाएगी और कार्यवाही आमंत्रित करेगी।
इसके साथ ही अपील का निस्तारण कर दिया गया।