राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की बिगड़ती स्थिति पर स्वतः संज्ञान लिया, कहा- अस्पताल जीवन से नहीं खेल सकते

Update: 2024-11-13 06:38 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य में अस्पतालों की ओर से घोर लापरवाही सहित सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की बिगड़ती स्थिति पर स्वतः संज्ञान लिया। कोर्ट ने केंद्र तथा राज्य मंत्रालय से वर्तमान स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सुधार के लिए उठाए जा रहे प्रभावी कदमों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।

जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने कहा कि भले ही भारत के संविधान द्वारा स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार को आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी गई लेकिन सम्मान का अधिकार जो अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में शामिल है, स्वास्थ्य और मेडिकल सहायता के अधिकार तक विस्तारित है।

इसके अलावा, संविधान में अनुच्छेद 38, 41 और 47 जैसे विभिन्न अनुच्छेदों को DPSP के रूप में शामिल किया गया, जो आम जनता को स्वास्थ्य सेवा सुविधाएं प्रदान करने के लिए सरकार के संवैधानिक दायित्व को दर्शाता है।

कोर्ट ने कहा,

“स्वास्थ्य का अधिकार मानव गरिमा का अनिवार्य घटक है। यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है कि इस अधिकार की रक्षा की जाए और राष्ट्र के सभी नागरिकों के लिए इसे बढ़ावा दिया जाए।”

न्यायालय ने माना कि स्वास्थ्य के अधिकार को यजुर्वेद के साथ-साथ मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 25 में भी मान्यता दी गई।

इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने सरकारी अस्पताल और किसी भी अन्य मेडिकल संस्थान के पेशेवर दायित्व को बिना किसी भेदभाव और लापरवाही के जीवन को संरक्षित करने के लिए उजागर किया। बताया कि कई स्वास्थ्य योजनाएं और नीतियां होने के बावजूद स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है।

न्यायालय ने दैनिक हिंदी लोकल में प्रकाशित कुछ समाचार लेखों का उल्लेख किया, जिसमें अस्पतालों और मेडिकल कर्मचारियों की घोर लापरवाही के मामलों की रिपोर्ट की गई, जिससे लोगों की जान खतरे में पड़ गई। कहा कि अस्पताल प्रशासन और कर्मचारियों को लापरवाही से मानव जीवन के साथ खेलने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

“यह समय की मांग है कि सरकार अब अपनी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करे और बड़े पैमाने पर जनता के हित में बेहतर और पर्याप्त सुविधाओं के साथ अच्छी संख्या में अस्पताल और सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करे। वर्तमान स्वास्थ्य सेवा और व्यवस्था को नवीनीकृत और बेहतर बनाने की आवश्यकता है।”

इसलिए स्थिति को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने आम जनता के समक्ष आ रही समस्या का समाधान खोजने के लिए स्वप्रेरणा से संज्ञान लिया और वर्तमान स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था में सुधार के लिए संबंधित सरकारों द्वारा उठाए जा रहे प्रभावी कदमों पर केंद्र और राज्य से रिपोर्ट मांगी।

केस टाइटल: स्वप्रेरणा: सभी के स्वास्थ्य और कल्याण के अधिकार के मामले में

Similar News