भविष्य की फीस वसूलने के लिए स्टूडेंट्स के मूल दस्तावेज रोकना अवैध: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने अहम फैसले में स्पष्ट किया कि यूनिवर्सिटी या शैक्षणिक संस्थान किसी स्टूडेंट के मूल दस्तावेजों को भविष्य की फीस वसूली के साधन के रूप में अपने पास नहीं रख सकते। अदालत ने कहा कि एडमिशन के समय जमा कराए गए दस्तावेज केवल सत्यापन और पात्रता जांच के उद्देश्य से होते हैं, न कि स्टूडेंट को फीस भुगतान के लिए बाध्य करने के उपकरण के रूप में।
जस्टिस अनुरूप सिंघी की सिंगल बेंच एक पूर्व MBBS स्टूडेंट की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। स्टूडेंट ने अदालत से अपने मूल दस्तावेज वापस दिलाने का निर्देश देने की मांग की, जो उसने वर्ष 2022 में MBBS पाठ्यक्रम में एडमिशन लेते समय यूनिवर्सिटी में जमा कराए थे। वह प्रथम और द्वितीय वर्ष की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी और तृतीय वर्ष की फीस भी जमा कर चुकी थी।
इसके बाद खराब स्वास्थ्य के चलते उसे पाठ्यक्रम छोड़ना पड़ा और उसने पूरी तरह अलग विषय में दूसरे यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया। नए संस्थान में परीक्षा देने के लिए मूल दस्तावेज प्रस्तुत करना अनिवार्य है लेकिन पूर्व यूनिवर्सिटी ने उन्हें लौटाने से इंकार कर दिया जिसके कारण छात्रा को अदालत का सहारा लेना पड़ा।
यूनिवर्सिटी की ओर से दलील दी गई कि यदि कोई स्टूडेंट बीच में ही पाठ्यक्रम छोड़ देता है तो शेष वर्षों की सीट खाली रह जाती है और संस्थान को आर्थिक नुकसान होता है। ऐसे में यदि दस्तावेज वापस किए गए तो संस्थान को बकाया फीस की वसूली के लिए हर स्टूडेंट के पीछे भागना पड़ेगा।
इस तर्क को सिरे से खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि दस्तावेजों को रोककर रखना एडमिशन प्रक्रिया के उद्देश्य के विपरीत है। अदालत ने काउंसलिंग बोर्ड की सूचना पुस्तिका का हवाला देते हुए कहा कि उसमें केवल एडमिशन प्रक्रिया से जुड़ी शर्तें हैं लेकिन कहीं भी यह प्रावधान नहीं है कि स्टूडेंट के पाठ्यक्रम छोड़ने पर यूनिवर्सिटी को उसके मूल दस्तावेज अपने पास रखने का अधिकार होगा।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एडमिशन के समय स्टूडेंट या अभिभावकों द्वारा दिए गए किसी शपथपत्र में भी यूनिवर्सिटी को ऐसे असीमित अधिकार नहीं दिए गए कि वह दस्तावेज रोककर छात्र के भविष्य और करियर को नुकसान पहुंचाए।
इन तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने कहा कि शेष दो वर्षों की फीस वसूली के लिए स्टूडेंट के मूल दस्तावेजों को रोकना पूरी तरह अनुचित और अवैध है। कोर्ट ने यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया कि वह अगले दिन तक सभी दस्तावेज स्टूडेंट को सौंप दे।
मामले की अगली सुनवाई 22 जनवरी, 2026 को निर्धारित की गई है।