कुछ सरकारी पदों की भर्ती में बोनस अंक देना विशुद्ध नीतिगत निर्णय, यदि सभी पदों के लिए नहीं दिया जाता तो यह भेदभावपूर्ण नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने मेडिकल अधिकारी (डेंटल) के पद पर नियुक्ति के लिए 30% बोनस अंक देने के लिए सरकार को निर्देश देने की प्रार्थना के साथ दायर याचिका खारिज कर दी, क्योंकि सरकार द्वारा विभिन्न अन्य पदों के लिए इस तरह का बोनस अंकन किया गया।
न्यायालय ने कहा कि बोनस अंकन सहित पात्रता शर्तों को निर्धारित करना विशुद्ध रूप से नीतिगत निर्णय है, जो राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है, जिसमें तब तक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता, जब तक कि यह स्पष्ट रूप से मनमानी और मनमाना न हो।
जस्टिस विनीत कुमार माथुर की पीठ ने कहा,
"यदि राज्य सरकार ने याचिकाकर्ता जैसे व्यक्तियों द्वारा मेडिकल अधिकारी (डेंटल) के पद पर की गई सेवाओं के लिए कोई बोनस अंक प्रदान नहीं करने का विकल्प चुना है तो इसे केवल इस आधार पर भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता कि अन्य भर्ती प्रक्रियाओं में राज्य सरकार सामान्यतः बोनस अंक प्रदान करने का प्रावधान करती है। किसी विशेष भर्ती में बोनस अंक प्रदान करना या न देना राज्य सरकार का नीतिगत निर्णय है। इसमें तब तक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता जब तक कि यह स्पष्ट रूप से मनमानी या मनमाना न हो।"
याचिकाकर्ता मेडिकल अधिकारी (डेंटल) के पद के लिए आवेदक था। उसने प्रार्थना की कि विभाग में उसकी लंबी सेवा के कारण उसे 30% बोनस अंक प्रदान किए जाने चाहिए, इस तथ्य के बावजूद कि इस पद के लिए अधिसूचना में इस तरह के बोनस अंक का कोई प्रावधान नहीं था।
याचिकाकर्ता के वकील का मामला यह था कि इस तरह के बोनस अंक आमतौर पर राज्य सरकार द्वारा अन्य पदों पर भर्ती के लिए उनकी अधिसूचना में निर्धारित किए गए। इसलिए मेडिकल अधिकारी के पद के लिए इस तरह के प्रावधान की अनुपस्थिति को भेदभावपूर्ण माना गया।
दूसरी ओर एडिशनल एडवोकेट जनरल ने तर्क दिया कि किसी विशेष पद पर उम्मीदवारों द्वारा की गई सेवाओं के लिए बोनस अंक देने या न देने के बारे में निर्णय राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। वर्तमान मामले में राज्य सरकार ने ऐसे बोनस अंक देना व्यवहार्य नहीं समझा और इसे भेदभावपूर्ण नहीं कहा जा सकता।
न्यायालय ने शेर सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य के सुप्रीम कोर्ट के मामले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि न्यायालय सरकारी नीति के मामलों में हस्तक्षेप करने में धीमा रहेगा। सिवाय इसके कि जब यह दिखाया जाए कि निर्णय अनुचित, दुर्भावनापूर्ण या किसी वैधानिक निर्देश के विपरीत है।
इसके अलावा कृष्णन कक्कंथ बनाम केरल सरकार एवं अन्य के सुप्रीम कोर्ट के अन्य मामले का हवाला दिया गया, जिसमें यह माना गया कि अनुच्छेद 14 के संदर्भ में अनुचितता और मनमानी का पता लगाने के लिए नीति निर्णय में बुद्धिमत्ता का पता लगाने की कवायद में प्रवेश करना आवश्यक नहीं है। जब तक नीति किसी कारण से सूचित न हो और भेदभाव के दोष से ग्रस्त न हो तब तक इसे रद्द नहीं किया जा सकता।
अंत में कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के अन्य मामले सत्य देव भगौर एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य का उल्लेख किया, जिसमें विशेष सरकारी पद के लिए बोनस अंक न देने के समान नीतिगत निर्णय को मनमाना नहीं माना गया।
इस विश्लेषण की पृष्ठभूमि में न्यायालय ने माना कि वर्तमान भर्ती प्रक्रिया में बोनस अंक न देकर राज्य सरकार द्वारा कोई अवैधता नहीं की गई।
\तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल- राजीव सिदाना एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य।