APAR न रखने की विभागीय चूक पर कर्मचारी को सज़ा नहीं दी जा सकती: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने महत्त्वपूर्ण फैसले में साफ किया कि कर्मचारी की वार्षिक गोपनीय आख्या (ACR/APAR) संरक्षित न रख पाने की गलती यदि स्वयं विभाग की हो तो उसके आधार पर संशोधित आश्वस्त करियर प्रगति योजना (MACP) का लाभ नहीं रोका जा सकता। अदालत ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) का आदेश बरकरार रखा, जिसमें कर्मचारी के पक्ष में निर्णय दिया गया।
जस्टिस विनीत कुमार माथुर और जस्टिस बिपिन गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि APAR को संधारित करना पूर्णतः नियोक्ता का दायित्व है और कर्मचारी का इस पर कोई नियंत्रण नहीं होता। ऐसे में विभाग अपनी ही चूक का फायदा उठाकर उस लाभ से कर्मचारी को वंचित नहीं कर सकता, जिसका वह हकदार है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि जब रिकॉर्ड विभाग के पास ही नहीं हैं तो दोष कर्मचारी पर डालना कानूनन अनुचित है।
मामला खेल प्राधिकरण में 1987 में नियुक्त एक सहायक से जुड़ा है, जिसे कुछ पदोन्नतियाँ तो मिलीं लेकिन 2008 में लागू हुई MACP योजना के तहत 20 वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद भी लाभ नहीं दिया गया। विभाग ने यह कहते हुए दावा ठुकरा दिया कि उसके पुराने ACR उपलब्ध नहीं हैं। कर्मचारी ने इस निर्णय के खिलाफ कैट का रुख किया, जहां अधिकरण ने स्पष्ट किया कि कार्मिक विभाग के निर्देशों के अनुसार ACR/APAR का रिकॉर्ड रखना पूरी तरह से नियोक्ता की जिम्मेदारी है। इसलिए योजना का लाभ रोका नहीं जा सकता।
राज्य सरकार ने CAT के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी मगर यहां भी उसकी दलीलें टिक नहीं पाईं। अदालत ने पाया कि रिकॉर्ड संधारण में हुई कमी विभाग की प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम है। इसका दंड किसी भी स्थिति में कर्मचारी को नहीं दिया जा सकता। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि गैर–उपलब्ध APAR के आधार पर दूसरा वित्तीय उन्नयन रोका जाना कानून के बिल्कुल विपरीत है।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका को निरस्त करते हुए CAT का आदेश बरकरार रखा और स्पष्ट किया कि विभागीय रिकॉर्ड–प्रबंधन की कमी की आड़ में कर्मचारी के विधिसंगत अधिकारों पर रोक नहीं लगाई जा सकती।