बोनस अंक देने के बजाय हटाए गए प्रश्नों के अंकों को शेष प्रश्नों में समान रूप से वितरित करना भेदभावपूर्ण नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2024-09-13 08:58 GMT

राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि हटाए गए प्रश्नों के अंकों को समानुपातिक रूप से एक ही विषय के शेष प्रश्नों में वितरित करना अभ्यर्थियों के बीच भेदभाव नहीं करता, क्योंकि यह पहले से तय नहीं किया जा सकता कि कौन सा प्रश्न हटाया जाएगा और विवादित प्रश्न सभी अभ्यर्थियों के लिए हटा दिए गए।

जस्टिस विनीत कुमार माथुर की पीठ जूनियर अकाउंटेंट और तहसील रेवेन्यू अकाउंटेंट के पद के अभ्यर्थियों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने परीक्षा में एक विशेष विषय के हटाए गए प्रश्नों के अंकों को समायोजित करने में संबंधित राज्य विभाग की कार्यप्रणाली को चुनौती दी।

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि हटाए गए प्रश्नों के अंकों को उसी विषय के प्रश्नों में जोड़ना गलत है। हटाए गए प्रश्नों के अंक या तो कुल अंकन से पूरी तरह हटा दिए जाने चाहिए या सभी अभ्यर्थियों को बोनस अंक दिए जाने चाहिए।

इसका विरोध करते हुए प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि पद के लिए परीक्षा को विशिष्ट भार और प्रश्नों की संख्या वाले विषयों में विभाजित किया गया, इसलिए प्रत्येक विषय में अंकों के वितरण के मामले में समानता रखने के लिए कार्यप्रणाली अपनाई गई।

यह भी प्रस्तुत किया गया कि इस कार्यप्रणाली से याचिकाकर्ताओं को कोई पूर्वाग्रह नहीं हुआ, क्योंकि प्रतिवादियों को भी पहले से पता नहीं था कि कौन से प्रश्न हटाए जाएंगे। इसलिए यह प्रणाली पूरी तरह पारदर्शी और निष्पक्ष थी।

न्यायालय ने प्रतिवादियों द्वारा प्रस्तुत तर्कों के साथ तालमेल बिठाया और न्यायालय के समन्वय पीठ के निर्णय विनोद कुमार बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य का हवाला दिया, जिसमें एक समान प्रश्न पर विचार किया गया और निम्नलिखित निर्णय दिया गया था:

“प्रतिवादियों द्वारा प्रश्नों को विषयवार वितरित कर दिए जाने के बाद हटाए गए प्रश्नों के अंकों को विषयवार वितरित करने में उनकी कार्रवाई को गलत नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम अंकों में वृद्धि के माध्यम से प्रश्नों को हटाने का लाभ विषयवार दिया जाना चाहिए। किसी विशेष विषय में विशेष प्रश्नों का प्रयास करने वाले उम्मीदवार को हटाए गए प्रश्नों के कारण नुकसान न उठाना पड़े। यदि हटाए गए प्रश्नों से संबंधित अंक शेष सभी प्रश्नों में समान रूप से वितरित किए जाते तो अन्य विषयों के कुल अधिकतम अंक बढ़ जाते, जिससे प्रतिवादियों द्वारा दिए गए वेटेज में बदलाव होता जो उचित नहीं होगा।”

न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादियों द्वारा समान विषय में हटाए गए प्रश्नों के अंकों को आनुपातिक रूप से वितरित करने में अपनाई गई कार्यप्रणाली ने उम्मीदवारों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया, क्योंकि यह पहले से तय नहीं किया जा सकता कि कौन सा प्रश्न हटाया जाएगा। इसलिए अपनाई गई प्रणाली न्यायसंगत और निष्पक्ष थी।

तदनुसार याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल- सुरेन्द्र चौधरी एवं अन्य बनाम राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड एवं अन्य।

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