पहली बार 164 CrPC के बयान में लगाए गए बलात्कार के आरोप भी चार्ज फ्रेमिंग के दौरान नज़रअंदाज़ नहीं किए जा सकते :राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि यदि पीड़िता ने बलात्कार का आरोप पहली बार दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 164 के तहत दर्ज बयान में लगाया हो तो केवल इस आधार पर उस आरोप को चार्ज फ्रेमिंग (आरोप तय करने) के चरण पर ख़ारिज नहीं किया जा सकता।
मामले की पृष्ठभूमि
जस्टिस संदीप शाह की एकलपीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने सेशन कोर्ट द्वारा उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों ग़लत तरीके से प्रवेश, अवैध रूप से रोकना, चोट पहुचाना महिला की लज्जा भंग करना और बलात्कार को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता का कहना था कि FIR स्वयं शिकायतकर्ता के बयान पर आधारित थी। उसमें बलात्कार का कोई उल्लेख नहीं था। इसके अतिरिक्त CrPC की धारा 161 के तहत दर्ज बयानों में भी बलात्कार की कोई चर्चा नहीं थी। इसलिए CrPC की धारा 164 के तहत दिए गए बयान में लगाए गए नए आरोप को सोची-समझी सुधार कहा जा सकता है। केवल उसके आधार पर आरोप तय नहीं किए जा सकते।
अदालत ने इस दलील को ठुकरा दिया और कहा,
"पीड़िता ने अपने CrPC की धारा 161 के बयान में बलात्कार की घटना का उल्लेख नहीं किया। हालांकि, CrPC की धारा 164 के तहत दिए गए बयान में उसने स्पष्ट रूप से इस घटना का उल्लेख किया। पुलिस ने भी गहन जांच के बाद अभियुक्त के खिलाफ अपराध साबित पाया।"
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय नाहर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2022) 5 SCC 295 पर भरोसा किया। उस मामले में भी पीड़िता ने पहली बार CrPC की धारा 164 के बयान में आरोप लगाया और सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केवल CrPC की धारा 161 में आरोप न होने से अभियुक्त स्वतः दोषमुक्त नहीं हो जाता।
हाईकोर्ट ने यह भी नोट किया कि आरोप केवल पीड़िता के बयान तक सीमित नहीं थे। मेडिकल रिपोर्ट और अन्य गवाहों के CrPC की धारा 161 के तहत दिए गए बयानों ने भी आरोप की पुष्टि की। गवाहों ने कहा कि पीड़िता ने उन्हें अभियुक्त द्वारा बलात्कार किए जाने की बात बताई, जो कथित हमले से लगभग दो महीने पहले की घटना थी।
अदालत ने कहा,
"न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना होता है कि एक ओर अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार मिले। उसे अनावश्यक रूप से पूर्वाग्रह न झेलना पड़े वहीं दूसरी ओर यह भी सुनिश्चित करना होता है कि दोषी कानून की पकड़ से बच न सके और पीड़ित तथा समाज दोनों को न्याय मिले।"
इस पृष्ठभूमि में हाईकोर्ट ने कहा कि CrPC की धारा 164 के बयान में लगाए गए बलात्कार के आरोप गवाहों के बयानों और मेडिकल रिपोर्ट से पुष्ट हैं। चार्ज फ्रेमिंग के चरण पर उन्हें ख़ारिज करने का कोई आधार नहीं है।
अदालत ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: सीताराम बनाम राज्य राजस्थान एवं अन्य