गंभीर चोट/हत्या के प्रयास के मामलों में सिर्फ डॉक्टर की राय पर्याप्त नहीं, रेडियोलॉजिस्ट की गवाही अनिवार्य: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में कहा कि गंभीर चोट (Section 326 IPC) और हत्या के प्रयास (Section 307 IPC) जैसे मामलों में केवल मेडिकल ज्यूरिस्ट की गवाही के आधार पर चोट की प्रकृति निर्धारित नहीं की जा सकती। अदालत ने स्पष्ट किया कि जिस रेडियोलॉजिस्ट के एक्स-रे रिपोर्ट पर मेडिकल ज्यूरिस्ट की राय आधारित है, उसका न्यायालय में परीक्षण आवश्यक है और एक्स-रे भी रिकॉर्ड पर प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
जस्टिस संदीप शाह की पीठ ने कहा कि जब गंभीर धाराओं में चोट की प्रकृति निर्धारित करनी हो, तब एक्स-रे तैयार करने वाले रेडियोलॉजिस्ट की परीक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।
कोर्ट ने कहा,
"IPC की धारा 326 और 307 से संबंधित अपराधों के मामलों में रेडियोलॉजिस्ट का परीक्षण आवश्यक है, क्योंकि एक्स-रे और उससे संबंधित विवरण उसी के परीक्षण के बाद रिकॉर्ड पर आते हैं।"
यह निर्णय उस आपराधिक पुनर्विचार याचिका में दिया गया, जिसमें ट्रायल कोर्ट ने CrPC की धारा 311 के तहत दाखिल लोक अभियोजक की आवेदन को देरी के आधार पर खारिज कर दिया था। अभियोजन ने रेडियोलॉजिस्ट को बुलाने के लिए आवेदन दिया, क्योंकि डॉक्टर ने क्रॉस-एग्जामिनेशन में स्वीकार किया था कि उनका मत एक्स-रे रिपोर्ट पर आधारित है।
ट्रायल कोर्ट ने तर्क दिया कि आवेदन देर से दायर हुआ है और रेडियोलॉजिस्ट की गवाही जरूरी नहीं है।
हाईकोर्ट ने कहा,
"देरी से दायर होना पर्याप्त कारण नहीं।"
हाईकोर्ट ने कहा कि CrPC की धारा 311 के तहत किसी गवाही को बुलाने का आवेदन कभी भी दायर किया जा सकता है, बशर्ते वह न्याय के हित में जरूरी हो। इसलिए देरी आधार बनाकर आवेदन खारिज करना विधि के अनुरूप नहीं है।
अदालत ने कहा कि मेडिकल ज्यूरिस्ट ने जो राय दी है वह रेडियोलॉजिस्ट की रिपोर्ट पर आधारित है। ऐसे में रेडियोलॉजिस्ट का परीक्षण न होना न्याय में गंभीर चूक साबित हो सकती थी।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के मामलों Soma v. State of Rajasthan और Akula Raghuram v. State of Andhra Pradesh का भी हवाला दिया, जिनमें कहा गया कि एक्स-रे की प्रदर्शनी और रेडियोलॉजिस्ट की गवाही गंभीर चोट जैसी धाराओं को सिद्ध करने के लिए अनिवार्य हैं।
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश निरस्त करते हुए निर्देश दिया कि रेडियोलॉजिस्ट को तत्काल समन कर अदालत में परीक्षित (Examine) किया जाए।
याचिका को स्वीकार किया गया और ट्रायल कोर्ट को उचित कार्रवाई के निर्देश दिए गए।