अपील के 30 साल बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने कार्यवाही में देरी का हवाला देते हुए अपहरण मामले में सजा घटाकर 5 दिन की
राजस्थान हाईकोर्ट ने 1992 के अपहरण मामले में दोषी की अपील पर निर्णय लेने में 30 साल की देरी का हवाला देते हुए सजा कम की।
जस्टिस मनोज कुमार गर्ग की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता-दोषी ने "लंबे समय तक चले मुकदमे के कारण मानसिक पीड़ा और आघात झेला है।" इस प्रकार 2 साल के कठोर कारावास की सजा को घटाकर पहले से ही भुगती गई अवधि, यानी 5 दिन कर दिया।
अपीलकर्ता के खिलाफ 1992 में नाबालिग लड़की की गुमशुदगी की रिपोर्ट के संबंध में आईपीसी की धारा 363 और 366-ए के तहत अपराध के लिए मामला दर्ज किया गया। अपीलकर्ता को दोषी ठहराए जाने के साथ 1994 में मुकदमा समाप्त हुआ और उसे 2 साल के कठोर कारावास और 100 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई। सजा में कमी के लिए ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई।
सरकारी वकील ने इस तर्क का इस आधार पर विरोध किया कि इस तरह की कमी के लिए न तो कोई अवसर है और न ही मामले में दया या सहानुभूति के लिए कोई आधार है।
अदालत ने पाया कि अपीलकर्ता पहले ही 5 दिन की कैद काट चुकी है और चूंकि घटना 1992 की है। इसलिए उसे लंबी सुनवाई के कारण मानसिक पीड़ा और आघात का सामना करना पड़ा है।
इन तथ्यों के आधार पर अदालत ने निम्नलिखित फैसला सुनाया:
“समग्र परिस्थितियों और इस तथ्य को देखते हुए कि अपीलकर्ता काफी समय से सलाखों के पीछे है, यह उचित और न्यायसंगत होगा यदि धारा 366 आईपीसी के तहत अपराध के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा को अपीलकर्ता द्वारा पहले से ही भुगती गई अवधि में घटा दिया जाए।”
इसलिए अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया, जिसके तहत 2 साल की सजा को घटाकर 5 दिन कर दिया गया, यानी अपीलकर्ता द्वारा पहले से ही भुगती गई अवधि। जुर्माना राशि माफ कर दी गई और जमानत बांड भी माफ कर दिए गए।
केस टाइटल: कमला बनाम राजस्थान राज्य