'पीड़िता की मानसिक स्थिति सामान्य रहने से आरोपों की सत्यता पर संदेह': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने POCSO मामले में शिक्षक की सजा निलंबित की
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354-ए और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) की धारा 10 और 12 के तहत यौन उत्पीड़न के दोषी स्कूल शिक्षक की सजा उसकी अपील के लंबित रहने तक निलंबित की।
जस्टिस नमित कुमार ने कहा,
"जिस किसी भी बच्चे ने ऐसी घटना का अनुभव किया होगा, वह कुछ समय के लिए मानसिक रूप से आघातग्रस्त रहा होगा, जबकि कथित घटना के अगले ही दिन 03.11.2022 को पीड़िता अपने माता-पिता के साथ पी.टी.एम. में गई थी। उसने स्कूल में कुछ तस्वीरें भी खींची थीं। उन्हें अपने इंस्टाग्राम अकाउंट के माध्यम से "स्कूल में मजे" शीर्षक के साथ सोशल मीडिया पर अपलोड किया था।"
कोर्ट ने टिप्पणी की कि एक नाबालिग लड़की से इस तरह के व्यवहार की उचित रूप से अपेक्षा नहीं की जा सकती, जिसका एक दिन पहले ही स्कूल में उसके शिक्षक द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया।
जस्टिस कुमार ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कथित घटना के बाद अभियोक्ता का आचरण और आचरण अभियोजन पक्ष के बयान पर विश्वास नहीं जगाता है। पीड़िता के 03.11.2022 के व्यवहार में भय, आघात और भावनात्मक संकट का कोई संकेत नहीं दिखता, जो आमतौर पर ऐसे गंभीर अपराध की पीड़िता से अपेक्षित होता है।
पीठ ने आगे कहा,
"कथित घटना के बाद भी पीड़िता की मानसिक स्थिति बिल्कुल सामान्य रही, जो उसके आरोपों की सत्यता पर गंभीर संदेह पैदा करती है और दृढ़ता से संकेत देती है कि पीड़िता द्वारा बताई गई घटना कथित तरीके से नहीं हुई।"
अभियोजन पक्ष के अनुसार, सातवीं कक्षा की छात्रा, 12 वर्षीय पीड़िता ने आरोप लगाया कि उसके शिक्षक दिनेश कुमार ने उसे स्कूल में मिलने के लिए बुलाया, अश्लील टिप्पणियां कीं और उसे अनुचित तरीके से छुआ। कथित तौर पर घर लौटने के बाद उसने अपने पिता को घटना के बारे में बताया, जिसके बाद FIR दर्ज की गई।
आवेदक को इस मामले में दोषी ठहराया गया और विभिन्न प्रावधानों के तहत जुर्माने सहित पांच साल तक के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।
सज़ा निलंबित करने की मांग करते हुए अपीलकर्ता के सीनियर वकील ने तर्क दिया कि उसे व्यक्तिगत रंजिश के कारण झूठा फंसाया गया। यह तर्क दिया गया कि आवेदक ने पहले पीड़िता को स्कूल में मोबाइल फ़ोन लाने और वीडियो रील बनाने के लिए फटकार लगाई, जिसके कारण कथित तौर पर दुश्मनी और झूठे आरोप लगे।
दोनों पक्षकारों को सुनने के बाद कोर्ट ने पाया कि अपील में कुछ तर्कपूर्ण बिंदु थे, जिनकी सुनवाई निकट भविष्य में होने की संभावना नहीं है। अपीलकर्ता पहले ही एक वर्ष से अधिक समय तक हिरासत में रह चुका है।
यह देखते हुए कि मामले में मेडिकल या वैज्ञानिक पुष्टि का अभाव है और गुण-दोष पर कोई टिप्पणी किए बिना कोर्ट ने कहा कि अपील लंबित रहने तक सज़ा को निलंबित करना उचित है।
इसमें आगे कहा गया,
"मौजूदा मामला किसी भी मेडिकल या वैज्ञानिक साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं है, क्योंकि पीड़िता का मेडिकल टेस्ट 03.11.2022 को किया गया था, जबकि FIR 02.11.2022 को, यानी मेडिकल टेस्ट से पहले दर्ज की गई थी। इसके अलावा, मेडिकल रिकॉर्ड से पता चलता है कि पीड़िता ने 03.11.2022 को आयोजित उक्त टेस्ट से पहले अपने कपड़े बदले थे, जो तथ्य मेडिकल निष्कर्षों के साक्ष्य मूल्य पर असर डाल सकता है।"
परिणामस्वरूप, याचिका स्वीकार कर ली गई।
Title: XXXXX VS STATE OF U.T. CHANDIGARH [CRM-48642-2024 in CRA-S-3761-2024]