UAPA | पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 2020 में 'राष्ट्र विरोधी गतिविधियों' के लिए गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को रिहा किया; उसके पास से केवल फोन बरामद हो पाया, जिसमें हथियारों की 'आपत्तिजनक' तस्वीरें ‌थीं

Update: 2024-09-09 07:38 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक यूएपीए आरोपी को में जमानत प्रदान की। उसे 2020 में "राष्ट्र-विरोधी" गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल और जस्टिस लपिता बनर्जी ने कहा कि "आरोपित व्यक्ति के पास से कथित रूप से केवल एक मोबाइल फोन बरामद किया गया है, जिसमें हथियारों और गोला-बारूद आदि की आपत्तिजनक तस्वीरें होने की बात कही गई है। इस स्तर पर आग्नेयास्त्रों या किसी अन्य आपत्तिजनक सामग्री की कोई अन्य बरामदगी नहीं हुई है। अपीलकर्ता 3 साल और 8 महीने से अधिक समय से हिरासत में है।"

खंडपीठ ने कहा, "भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के मौलिक अधिकार को सुनिश्चित करता है, जिसमें त्वरित सुनवाई का अधिकार भी शामिल है, जो पवित्र है। सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्णयों में माना है कि लंबे समय तक हिरासत में रहने से ही यूएपीए के तहत आरोपी को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देकर जमानत देने का अधिकार मिल जाता है। अपीलकर्ता लगभग तीन साल और आठ महीने से हिरासत में है।"

ये टिप्पणियां पटियाला कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई करते हुए की गईं, जिसके तहत गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 13, 16, 18, 20, शस्त्र अधिनियम की धारा 25 के तहत पुलिस स्टेशन समाना, जिला पटियाला में दर्ज उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया गया था।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील अर्जुन श्योराण ने तर्क दिया कि हालांकि यह आरोप लगाया गया है कि अपीलकर्ता गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल था, लेकिन एक मोबाइल फोन की बरामदगी के अलावा, उसके पास से कोई अन्य आपत्तिजनक सामग्री बरामद नहीं हुई है।

राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप यह है कि वह कथित रूप से राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में शामिल था, लेकिन उसके पास से केवल एक मोबाइल फोन बरामद किया गया है, जिसमें हथियारों के साथ कुछ व्यक्तियों की आपत्तिजनक तस्वीरें हैं और 'रेफरेंडम 2020' दिखाया गया है।

उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता राष्ट्र-विरोधी तत्वों के संपर्क में था और वे कुछ आतंकवादी गतिविधि को अंजाम देने की कगार पर थे।

प्रस्तुतियां सुनने के बाद, न्यायालय ने कहा कि, "अपीलकर्ता लगभग तीन वर्ष और आठ महीने से हिरासत में है। संवैधानिक न्यायालय ऐसी स्थिति को रोकना चाहेगा जहाँ मुकदमे की लंबी और कठिन प्रक्रिया, अपने आप में सजा बन जाए।"

यूनियन ऑफ इंडिया बनाम केए नजीब मामले पर भरोसा किया गया, जिसमें यह माना गया है कि यूएपीए के तहत जमानत देते समय लंबी हिरासत एक आवश्यक कारक होगी। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 त्वरित सुनवाई का अधिकार प्रदान करता है और यूएपीए के तहत दंडनीय अपराध के लिए विचाराधीन कैदी को जमानत देने के लिए लंबी अवधि की कैद एक अच्छा आधार होगी।

पीठ ने कहा, "यह भी माना गया है कि यूएपीए की धारा 43-डी के तहत प्रतिबंध भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 को प्रभावी करने के लिए न्यायालय की शक्तियों को नकार नहीं देगा।"

पीठ ने शोमा कांति सेन बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य [2024 लाइव लॉ (एससी) 280] के मामले का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "जब यह स्पष्ट हो जाता है कि समय पर सुनवाई संभव नहीं है और अभियुक्त ने काफी समय तक कारावास भोगा है, तो न्यायालय सामान्यतः उन्हें जमानत पर रिहा करने के लिए बाध्य होगा, क्योंकि स्वतंत्रता से वंचित करने का कोई भी रूप मामले के तथ्यों के अनुपात में होना चाहिए और साथ ही न्यायोचित एवं निष्पक्ष प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।"

यह कहते हुए कि "उपर्युक्त के मद्देनजर, खासकर जब अपीलकर्ता तीन वर्ष और आठ महीने से हिरासत में है और मुकदमे का अंत निकट नहीं है।"

न्यायालय ने जमानत खारिज करने के आदेश को खारिज कर दिया और अपील को स्वीकार कर लिया। याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कुछ शर्तें भी लगाईं और याचिका का निपटारा कर दिया गया।

केस टाइटलः राज कुमार@लवप्रीत @ लवली बनाम पंजाब राज्य

साइटेशन: 2024 लाइवलॉ (पी.एच.) 237


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