पुलिस थानों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग से शौचालय या लॉकअप उपलब्ध नहीं: पंजाब पुलिस ने हाईकोर्ट में बताया

Update: 2024-08-24 09:16 GMT

पंजाब पुलिस ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि जिला पुलिस थानों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग से लॉकअप या अलग से शौचालय उपलब्ध नहीं है।

पंजाब के सहायक पुलिस महानिरीक्षक द्वारा प्रस्तुत हलफनामे में कहा गया कि फील्ड यूनिट द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार यह पता चलता है कि जिला पुलिस थानों में अलग से लॉकअप का कोई प्रावधान नहीं है। जिला पुलिस थानों में ट्रांसजेंडर के लिए अलग से शौचालय उपलब्ध नहीं है।

यह घटनाक्रम तब सामने आया जब पेशे से वकील सनप्रीत सिंह ने हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर के रूप में पहचाना जाता है। इसलिए जेलों के अंदर अलग-अलग सेल/वार्ड/बैरक और शौचालय बनाए जाने चाहिए। साथ ही प्रत्येक पुलिस स्टेशन में अलग-अलग लॉकअप भी होने चाहिए, जिससे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को किसी भी तरह के मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न से बचाया जा सके जैसा कि नालसा बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर किया गया।

इसमें पटना हाईकोर्ट के लॉ फाउंडेशन बनाम बिहार राज्य और अन्य [2022 लाइव लॉ (पैट) 34] के फैसले पर भी भरोसा किया गया, जिसमें कहा गया कि न्यायालय ने बिहार की सभी जेलों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग वार्ड और सेल बनाने का निर्देश दिया।

ट्रांसजेंडर कैदियों की गवाही का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया कि जेल हिरासत संस्थान हैं, जहां पुरुषों द्वारा स्त्रैण व्यवहार हमेशा अधिकारियों और कैदियों दोनों द्वारा दुर्व्यवहार का अधिक जोखिम होता है। इसलिए जेलों के अंदर ट्रांसजेंडर व्यक्ति "यौन हिंसा के सबसे क्रूर रूपों" का शिकार बनते हैं।

याचिका पर विचार करते हुए न्यायालय ने पंजाब सरकार, हरियाणा सरकार और भारत संघ की सरकारों से जवाब मांगा था।

परिणामस्वरूप, पंजाब पुलिस ने जवाब में प्रस्तुत किया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए पुलिस स्टेशनों में अलग शौचालय या अलग लॉकअप की कोई सुविधा नहीं है।

हालांकि, इसमें यह भी कहा गया,

"जब किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को पुलिस स्टेशन या लॉकअप में ले जाया जाता है तो उसकी पहचान मेडिकल जांच या ट्रांसजेंडर व्यक्ति द्वारा आधार कार्ड, वोटर कार्ड आदि के रूप में प्रस्तुत किए गए दस्तावेज़ प्रमाण के सत्यापन के माध्यम से सुनिश्चित की जाती है।"

यह मामला 27 सितंबर को आगे के विचार के लिए चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल के समक्ष सूचीबद्ध है।

केस टाइटल- सनप्रीत सिंह बनाम यूओआई और ओआरएस।

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