मां या बच्चे की जान को छोड़ बाकी मामलों में गर्भपात को असंवैधानिक घोषित करने की याचिका पर हाईकोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा

Update: 2025-08-06 11:39 GMT

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, जिसमें यह घोषित करने की मांग की गई है कि गर्भवती महिला या अजन्मे बच्चे की जान को गंभीर और तात्कालिक खतरा छोड़कर अन्य सभी परिस्थितियों में गर्भपात (medical termination of pregnancy) असंवैधानिक है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है।

यह याचिका हरियाणा निवासी दीपक कुमार द्वारा दायर की गई है, जिसमें मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3(2) के साथ उसमें दी गई व्याख्या-1 (Explanation-1) को चुनौती दी गई है।

Explanation-1 में कहा गया है:
"जहां कोई गर्भवती महिला यह दावा करती है कि उसका गर्भ बलात्कार से हुआ है, वहां यह माना जाएगा कि ऐसे गर्भ के कारण उत्पन्न मानसिक पीड़ा, महिला की मानसिक सेहत को गंभीर चोट पहुंचाने के बराबर है।"

चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए 16 सितंबर तक जवाब देने को कहा।

याचिकाकर्ता के वकील संचार आनंद ने कोर्ट में तर्क दिया:
Explanation-1 के अनुसार रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर को यह अनुमति मिलती है कि यदि गर्भवती महिला मानसिक पीड़ा का हवाला देती है, तो वह गर्भपात कर सकता है। लेकिन यह डॉक्टर "स्त्री एवं प्रसूति रोग" (gynecology and obstetrics) में प्रशिक्षित होता है, न कि मानसिक रोग (psychiatry) में। इसलिए वह महिला की मानसिक स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए योग्य नहीं है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि इस प्रावधान का दुरुपयोग हो सकता है और प्री-कंसेप्शन और प्री-नेटल डायग्नोस्टिक तकनीक (लिंग चयन प्रतिबंध) अधिनियम का उद्देश्य विफल हो सकता है, क्योंकि कुछ लोग पहले लिंग परीक्षण कर लेते हैं और फिर यदि भ्रूण कन्या का हो, तो गर्भपात कराने के लिए इस एक्ट का सहारा लेते हैं—यह कहकर कि गर्भ अवांछित गर्भनिरोधक उपाय की विफलता से हुआ और इससे महिला की मानसिक सेहत को गंभीर नुकसान हो सकता है।

वहीं केंद्र सरकार की ओर से वरिष्ठ पैनल वकील धीरेज जैन ने याचिका का विरोध करते हुए कहा:
गर्भवती महिला की मानसिक स्थिति नहीं, बल्कि गर्भावस्था के प्रभाव का मूल्यांकन डॉक्टर (gynecologist) करता है। इसलिए मानसिक रोग विशेषज्ञ की आवश्यकता नहीं होती।

उन्होंने यह भी कहा कि गर्भधारण से जुड़ी स्वतंत्रता और विकल्प का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।

गर्भपात का अधिकार व्यक्ति की गरिमा, स्वायत्तता और प्रजनन स्वतंत्रता से जुड़ा है और यह पूरी तरह से एक व्यक्तिगत निर्णय है। यह अधिकार सुप्रीम कोर्ट के X बनाम दिल्ली राज्य और A (X की माँ) बनाम महाराष्ट्र राज्य मामलों में मान्यता प्राप्त है।

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