सेल्‍फ-इनक्रिमिनेशन | कंपनी संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत आवश्यकताओं को पूरा किए बिना अपने लिए संरक्षण की मांग नहीं कर सकती: पीएंडएच हाईकोर्ट

Update: 2025-01-17 06:28 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई कंपनी संविधान के अनुच्छेद 20(3) के प्रावधानों को पूरा किए बिना, अपने संरक्षण की मांग करके समन किए गए दस्तावेज को प्रस्तुत करने से इनकार नहीं कर सकती।

अनुच्छेद 20(3) यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए खुद के खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। इसका मतलब यह है कि किसी व्यक्ति को ऐसा साक्ष्य या गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जो उसे दोषी ठहराए।

जस्टिस एनएस शेखावत ने स्पष्ट किया कि,

"भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(3) पर विचार करते हुए, आत्म-अपराध के खिलाफ संरक्षण किसी व्यक्ति के बचाव में तभी आएगा जब ये तीन प्रावधान पूरे हों, (ए) ऐसे व्यक्ति के खिलाफ अपराध का आरोप (बी) साक्ष्य प्रदान करने की बाध्यता और (सी) उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों से संबंधित आत्म-अपराध सामग्री देना, चाहे मौखिक गवाही के रूप में हो या दर्ज किए गए बयान के रूप में या प्रस्तुत किए गए दस्तावेज़ के रूप में।"

न्यायालय ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत जो संरक्षण प्रदान किया गया है, वह अभियुक्त द्वारा किसी भी प्रकार की मजबूरी में राय व्यक्त करने या आपत्तिजनक सामग्री प्रस्तुत करने के विरुद्ध है।

वर्तमान मामले में न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता और उसके सह-अभियुक्तों को कभी भी कोई दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए बाध्य नहीं किया गया और न ही उन्हें कोई ऐसा बयान देने के लिए कहा गया, जिससे उनमें से किसी को दोषी ठहराया जा सके।

कोर्ट ने कहा, केवल कंपनी के रिकॉर्ड कीपर को कुछ दस्तावेज प्रस्तुत करने की आवश्यकता थी, जो वर्तमान मामले में शामिल विवाद पर प्रकाश डाल सकते थे और शिकायत में शामिल मुद्दों के निर्णय में ट्रायल कोर्ट की मदद कर सकते थे।

न्यायालय ने कहा कि किसी भी अभियुक्त को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत संरक्षण की ऐसी दलील देने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां की गईं, जिसके तहत कंपनी एलएसई सिक्योरिटीज लिमिटेड के संबंधित क्लर्क को बुलाने के लिए प्रतिवादी के आवेदन को अनुमति दी गई थी और उसे प्रॉक्सी के रिकॉर्ड के साथ बुलाया गया था।

विवादित आदेश को रद्द करने के लिए एक और प्रार्थना की गई है, जिसके तहत याचिकाकर्ता द्वारा रिकॉर्ड पर विशेषाधिकार का दावा करने वाले आवेदन को भी खारिज कर दिया गया है।

प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद, अदालत ने इस दलील को खारिज कर दिया कि तलब किया गया रिकॉर्ड संवेदनशील प्रकृति का था और इसमें कंपनी के विभिन्न सदस्यों के हस्ताक्षर शामिल थे, जिनके पास विभिन्न बैंकों के साथ-साथ कंपनी में भी भारी जमा राशि थी। वे कंपनी के सब-ब्रोकर थे और उनकी सहमति के बिना उनके हस्ताक्षरों का खुलासा नहीं किया जा सकता था।

न्यायाधीश ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता और उसके सह-आरोपी ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(3) की आपत्तियां ली थीं, जिसमें प्रावधान है कि किसी भी आरोपी को खुद के खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

जस्टिस शेखावत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि, "ट्रायल कोर्ट ने केवल एलएसई सिक्योरिटीज लिमिटेड, लुधियाना के संबंधित क्लर्क को निर्देश दिया है कि वह प्रॉक्सी के रिकॉर्ड के साथ-साथ 15.09.2012 को हुए निदेशकों के चुनाव के लिए दिए गए कंपनियों के संकल्प, मतदाताओं की कुल सूची, डाले गए मतों की सूची, मतदान एजेंटों की सूची, मतगणना एजेंटों, उम्मीदवारों की सूची और परिणाम तथा उनके रिकॉर्ड और साथ ही मतपत्रों के रिकॉर्ड के साथ-साथ मतदाताओं के हस्ताक्षरों के मूल रिकॉर्ड के साथ गवाह के रूप में उपस्थित हो।"

न्यायाधीश ने बताया कि एलएसई सिक्योरिटीज लिमिटेड का रिकॉर्ड कीपर वर्तमान मामले में आरोपी नहीं है। कोर्ट ने कहा, "इसके अलावा, न्यायालय ने किसी भी आरोपी को कोई दस्तावेज पेश करने का निर्देश नहीं दिया था और याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा उठाई गई दलील पूरी तरह से गलत है,"

उपरोक्त टिप्‍पणियों के साथ न्यायालय ने दलील को खारिज कर दिया।

केस टाइटल: एलएसई सिक्योरिटीज लिमिटेड बनाम जसविंदर सिंह कपूर

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