Sec.138 NI Act| मुआवज़ा जमा न करने मात्र से अपीलीय अदालत ज़मानत नहीं रोक सकती: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2025-09-26 03:38 GMT

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 138 एनआई एक्ट (चेक बाउंस केस) में दोषी व्यक्ति को केवल इस आधार पर जमानत से वंचित नहीं किया जा सकता कि उसने अपीलीय अदालत के आदेश अनुसार 20% मुआवजा राशि जमा नहीं की है।

अदालत ने कहा—

धारा 148 एनआई एक्ट अपीलीय अदालत को यह अधिकार देता है कि अपील लंबित रहते समय दोषी से कम से कम 20% जुर्माना/मुआवजा जमा कराने का निर्देश दे।

लेकिन यह प्रावधान न तो अपील दायर करने का अधिकार छीनता है और न ही सज़ा निलंबन (suspension of sentence) पर रोक लगाता है।

यदि विधायिका चाहती कि 20% जमा किए बिना न तो अपील सुनी जाए और न ही सज़ा रोकी जाए, तो वह इसे स्पष्ट रूप से प्रावधान में लिखती।

अदालत ने आगे कहा—

धारा 148 एनआई एक्ट तभी लागू होती है जब दोषी अपनी सज़ा/दंड को चुनौती देते हुए अपील दायर करे और यह अधिकार केवल अपील लंबित रहने तक रहता है।

धारा 430 बीएनएसएस, 2023 (पूर्व धारा 389 सीआरपीसी, 1973) के अनुसार, तीन साल तक की सज़ा वाले मामलों या जमानती अपराधों में, अपील लंबित रहते हुए सज़ा निलंबित की जा सकती है। इसका उद्देश्य है कि अपील के निर्णय तक दोषी की स्वतंत्रता बहाल रहे।

कहीं भी यह नहीं लिखा कि 20% मुआवजा जमा किए बिना अपील या सज़ा-निलंबन संभव नहीं। ऐसा कहना कानून की नई व्याख्या करने जैसा होगा।

नतीजतन, कोर्ट ने माना कि 20% जमा करना एक उचित शर्त हो सकती है, लेकिन यह अपील दाखिल करने या सज़ा निलंबन का अनिवार्य पूर्वशर्त (prerequisite) नहीं है।


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