रिटायरमेंट के बाद वेतन का पुनर्निर्धारण नहीं किया जा सकता, इसलिए रिटायर कर्मचारी से अतिरिक्त भुगतान की वसूली अनुचित: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने कहा कि किसी कर्मचारी की रिटायरमेंट के बाद वेतन का पुनर्निर्धारण, जिसके परिणामस्वरूप कर्मचारी द्वारा बिना किसी गलत बयानी या धोखाधड़ी के किए गए अतिरिक्त भुगतान की वसूली होती है, कानूनन अनुचित है।
पृष्ठभूमि तथ्य
याचिकाकर्ता सरकारी कर्मचारी था। वह 31.07.2016 को रिटायरमेंट की आयु प्राप्त करने पर रिटायर हुआ। उसकी रिटायरमेंट के बाद प्रतिवादियों के लेखा विभाग ने उसके वेतन निर्धारण में एक विसंगति पाई। याचिकाकर्ता का वेतन 11,170/- रुपये के बजाय गलत तरीके से 11,840/- रुपये निर्धारित किया गया। इसलिए प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता के वेतन का पुनर्निर्धारण करने का आदेश पारित किया। यह निर्धारित किया गया कि 20,000/- रुपये की अतिरिक्त राशि है। सेवाकाल के दौरान उन्हें 1,75,274/- रुपये का भुगतान किया गया। यह राशि याचिकाकर्ता के पेंशन लाभों से वसूल की गई।
याचिकाकर्ता ने इस वसूली को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) में चुनौती दी। हालांकि, न्यायाधिकरण ने प्रतिवादियों की कार्रवाई बरकरार रखी। हालांकि, न्यायाधिकरण ने याचिकाकर्ता को उसके पेंशन लाभों के विलंबित भुगतान पर ब्याज प्रदान किया।
न्यायाधिकरण के आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि प्रतिवादियों ने 31.07.2016 को सेवा से रिटायर होने के बाद 1,75,274/- रुपये की वसूली करके गंभीर गलती की है। दूसरी ओर, प्रतिवादी-भारत संघ ने दलील दी कि लेखा विभाग द्वारा याचिकाकर्ता के वेतन निर्धारण के संबंध में विसंगति पाई गई। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता का वेतन 11,170/- रुपये के बजाय गलती से 11,840/- रुपये निर्धारित कर दिया गया। यह भी तर्क दिया गया कि वेतन का बाद में पुनर्निर्धारण और 1,75,274/- रुपये की अतिरिक्त राशि की वसूली पूरी तरह से उचित थी क्योंकि उक्त राशि सार्वजनिक धन थी। प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को उसकी पात्रता से अधिक राशि रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
न्यायालय के निष्कर्ष
न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता 31.07.2016 को अधिवर्षिता की आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त हो गया। पंजाब राज्य एवं अन्य बनाम रफीक मसीह एवं अन्य के मामले में दिए गए निर्णय का हवाला दिया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी रिटायर कर्मचारी से वसूली नहीं की जा सकती, जहां नियोक्ता द्वारा गलती से उसकी पात्रता से अधिक भुगतान कर दिया गया हो।
यह भी पाया गया कि वेतन के प्रारंभिक निर्धारण में याचिकाकर्ता की ओर से किसी भी प्रकार की गलतबयानी या धोखाधड़ी का कोई आरोप नहीं था। थॉमस डैनियल बनाम केरल राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का भी हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया कि यदि नियोक्ता द्वारा कर्मचारी की किसी गलती के बिना किसी गलती के कारण अतिरिक्त भुगतान किया जाता है तो ऐसी राशि की वसूली नहीं की जा सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि कोर्ट का समता अधिकार क्षेत्र ऐसी परिस्थितियों में कर्मचारी को वसूली की कठिनाई से मुक्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
कोर्ट ने यह भी माना कि यदि किसी कर्मचारी को यह जानकारी थी कि प्राप्त भुगतान देय राशि से अधिक है या गलत भुगतान किया गया, या ऐसे मामलों में जहां गलत भुगतान के कुछ ही समय के भीतर त्रुटि का पता चल जाता है या उसे ठीक कर दिया जाता है तो न्यायालय किसी विशेष मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर अतिरिक्त भुगतान की गई राशि की वसूली का आदेश दे सकता है।
कोर्ट ने यह पाया कि कर्मचारी उस समय रिटायर हुआ जब उसका वेतन संशोधित किया गया और उससे वसूली की गई। यह माना गया कि याचिकाकर्ता की ओर से उसके वेतन के निर्धारण में कोई गलत बयानी या धोखाधड़ी नहीं हुई, जिसे उसकी रिटायरमेंट के बाद पुनर्निर्धारित किया गया, इसलिए सेवा अवधि के दौरान उसे भुगतान की गई अतिरिक्त राशि की वसूली नहीं की जा सकती।
यह भी माना गया कि याचिकाकर्ता से उसके पेंशन लाभों में से की गई कोई भी वसूली टिकाऊ नहीं थी। इसलिए इसे रद्द कर दिया गया। इसके अलावा, अदालत ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता से वसूल की गई 1,75,274 रुपये की राशि उसे आठ सप्ताह के भीतर वापस कर दी जाए।
उपरोक्त टिप्पणियों और निर्देशों के साथ याचिकाकर्ता कर्मचारी द्वारा दायर रिट याचिका का अदालत ने निपटारा कर दिया।
Case Name : Virender Pal vs. Union of India and Ors.