S.111 BNS | राज्य पहले गिरफ्तारी नहीं कर सकता और बाद में "संगठित अपराध" के सबूत नहीं जुटा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2024-10-02 08:25 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 111 के तहत "संगठित अपराध" के लिए किसी व्यक्ति को उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया स्वीकार्य सबूत के बिना गिरफ्तार नहीं कर सकता।

भारतीय दंड संहिता की जगह लेने वाले नए कानून BNS ने धारा 111 के तहत संगठित अपराध को अपराध के रूप में जोड़ा है। यदि अपराध के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो अधिकतम निर्धारित सजा मृत्युदंड है।

संगठित अपराध की परिभाषा इस प्रकार है- अपहरण, डकैती, वाहन चोरी, जबरन वसूली, भूमि हड़पना, ठेके पर हत्या, आर्थिक अपराध, साइबर अपराध, मानव तस्करी, ड्रग्स, हथियार या अवैध सामान या सेवाओं, वेश्यावृत्ति या फिरौती के लिए मानव तस्करी सहित कोई भी निरंतर गैरकानूनी गतिविधि, किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्य के रूप में या ऐसे सिंडिकेट की ओर से हिंसा, हिंसा की धमकी, जबरदस्ती या वित्तीय लाभ सहित प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भौतिक लाभ प्राप्त करने के लिए किसी अन्य गैरकानूनी तरीके का उपयोग करके, संगठित अपराध माना जाएगा।

जस्टिस अनूप चितकारा ने कहा,

"कानूनी रूप से स्वीकार्य आरोपों, अभियोगों या साक्ष्यों के बिना राज्य किसी संदिग्ध को उसके खिलाफ सबूतों को इकट्ठा करने के लिए गिरफ्तार नहीं कर सकता है या ऐसे संदिग्ध को हिरासत में लेकर किसी भी तरह से मामले को BNS की धारा 111 के दायरे में नहीं ला सकता। प्रथम दृष्टया साक्ष्य स्वीकार्य होना चाहिए और यदि ऐसे साक्ष्य को अस्वीकार्य माना जाता है तो पूरा आधार ही ढह जाएगा।"

वर्तमान मामले में आरोपी सूरज सिंह ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 [BNSS] की धारा 482 के तहत अग्रिम जमानत की मांग करते हुए याचिका दायर की। पुलिस द्वारा दायर जवाब के अनुसार, अन्य आरोपी द्वारा दिए गए प्रकटीकरण कथन में कहा गया कि सिंह ने संगठित अपराध करने के लिए कथित रूप से अवैध रूप से बंदूक खरीदी और विभिन्न संगठित अपराध भी किए।

सिंह के खिलाफ BNS की धारा 111, 310 (4), 310 (5) और शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25, 27 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

जवाब पर गौर करते हुए न्यायालय ने कहा,

"उसकी (सह-आरोपी की) हिरासत में जांच के दौरान, जांच से पता चलता है कि आरोपी करण सिंह ने पुलिस अधिकारी को बताया कि उसने अपने स्कूल के समय के दोस्त प्रदीप सिंह उर्फ ​​काका से पिस्तौल और कारतूस खरीदे थे, जिसने याचिकाकर्ता से इन्हें खरीदा था। उसके बाद कई मौकों पर याचिकाकर्ता सूरज ने उक्त पिस्तौल उधार ली। इस खुलासे के बयान के आधार पर जांचकर्ता ने याचिकाकर्ता सूरज को आरोपी के रूप में आरोपित किया था।"

प्रस्तुतियों की जांच करने के बाद जज ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023, [BSA] की धारा 23 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है- किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ पुलिस अधिकारी के समक्ष किया गया कोई भी कबूलनामा साबित नहीं किया जाएगा। धारा के प्रावधान में कहा गया है कि जब किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति से पुलिस अधिकारी की हिरासत में प्राप्त जानकारी के परिणामस्वरूप कोई तथ्य सामने आता है तो ऐसी जानकारी में से उतनी जानकारी, चाहे वह कबूलनामा हो या न हो, जो खोजे गए तथ्य से स्पष्ट रूप से संबंधित हो, साबित की जा सकती है। न्यायाधीश ने कहा कि उत्तर का अवलोकन करने से ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आता है जिससे सह-आरोपी द्वारा किए गए इकबालिया बयान को बीएसए की धारा 23 के प्रावधान के दायरे में लाया जा सके।

उन्होंने कहा,

इस प्रकार, आरोपी करण सिंह द्वारा किया गया खुलासा साक्ष्य में साबित नहीं किया जा सकता। इसलिए इसका कोई साक्ष्य मूल्य नहीं है।"

अदालत ने आगे कहा कि अन्य साक्ष्य पुलिस द्वारा अपने स्रोतों से प्राप्त गोपनीय जानकारी है, जिन्होंने आरोपियों के बारे में सूचना दी थी, जिनका नाम शुरू में एफआईआर में था, जिन्होंने एक गिरोह बनाया और पहले से ही आपराधिक गतिविधियों में लिप्त थे, अपराध करने की साजिश रच रहे थे।

राज्य द्वारा आरोपित याचिकाकर्ता की भूमिका का विश्लेषण करते हुए अदालत ने पाया कि प्रारंभिक साक्ष्य एक मुखबिर की पूर्व सूचना पर आधारित था, जो कि धारा 131 BSA के तहत विशेषाधिकार प्राप्त संचार है। इसलिए इसे साबित नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा,

"धारा 131, धारा 131 BSA में उल्लिखित अधिकारियों को दिया गया विशेषाधिकार है। इस प्रकार, उन्हें अपने स्रोत का नाम बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, यह साक्ष्य भी साबित नहीं किया जा सकता।"

इसमें आगे कहा गया,

"अन्य साक्ष्य जांचकर्ताओं के समक्ष हिरासत में सह-अभियुक्त का इकबालिया बयान है, जो BSA, 2023 की धारा 23(1) और 23(2) के अंतर्गत आता है। BSA, 2023 की धारा 23 के तहत, किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ न तो पुलिस अधिकारी के समक्ष किया गया इकबालिया बयान साबित किया जा सकता है, न ही किसी आरोपी द्वारा पुलिस अधिकारी के समक्ष किया गया इकबालिया बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष किए गए इकबालिया बयान के अलावा साबित किया जा सकता है। यदि ऐसा किया जाता है तो इसका मतलब यह होगा कि ऐसा इकबालिया बयान साक्ष्य में अस्वीकार्य होगा।"

संगठित अपराध के तहत गिरफ्तारी के लिए प्रथम दृष्टया साक्ष्य स्वीकार्य होना चाहिए

BNS की धारा 111 का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने कहा,

"किसी अपराध को संगठित अपराध की श्रेणी में लाने के लिए अपराध को BNS, 2023 की धारा 111 में वर्णित श्रेणी के अंतर्गत आना चाहिए। प्रथम दृष्टया साक्ष्य को किसी भी जारी गैरकानूनी गतिविधि को संगठित अपराध बनाने के लिए कानूनी रूप से स्वीकार्य होना चाहिए, जैसा कि BNS की धारा 111 में परिभाषित किया गया।"

कानूनी रूप से स्वीकार्य प्रथम दृष्टया साक्ष्य के बिना, राज्य किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को संदिग्ध या अन्य के खिलाफ ऐसे साक्ष्य की तलाश के लिए हिरासत में पूछताछ के लिए बाध्य नहीं कर सकता। न्यायालय ने कहा कि BNS की धारा 111 के दायरे में प्रथम दृष्टया मामला बनाने के लिए पहले साक्ष्य एकत्र किए जाने चाहिए। केवल ऐसे साक्ष्य ही आगे की जांच करने के लिए हिरासत में पूछताछ को उचित ठहराएंगे।

उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने कहा कि इस स्तर पर हिरासत में पूछताछ या प्री-ट्रायल कारावास का कोई औचित्य नहीं होगा।

परिणामस्वरूप, याचिका को स्वीकार कर लिया गया।

केस टाइटल: सूरज सिंह @ नोनी बनाम पंजाब राज्य

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