हाईकोर्ट द्वारा FIR रद्द होने के बाद व्यक्ति का नाम रिकॉर्ड से हटा देना चाहिए: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

Update: 2025-03-05 10:34 GMT

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने यह कहते हुए अपने रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि वह उस व्यक्ति का नाम हटा दे, जिसे एक एफआईआर में आरोपी बनाया गया था, लेकिन बाद में वह रद्द कर दी गई।

और कहा कि, "जब किसी व्यक्ति को न्यायालय द्वारा उसके अपराध से बरी कर दिया जाता है, तो ऐसे आरोप के अवशेषों को उस व्यक्ति का पीछा नहीं करने देना चाहिए,"

याचिकाकर्ता ने कहा कि वह एक सम्मानित व्यक्ति हैं और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में इंटरव्यू पास करने के बावजूद उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं मिला, क्योंकि ई-कोर्ट पोर्टल पर उनका नाम एक आपराधिक मामले में आरोपी के रूप में दर्ज था।

जस्टिस एन.एस. शेखावत ने कहा, "यह किसी व्यक्ति के गोपनीयता के अधिकार के विपरीत होगा, जिसमें भुलाए जाने का अधिकार और सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार शामिल है, जिसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा संरक्षित किया गया है।"

अदालत ने रजिस्ट्री और गुरुग्राम जिले के सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे IPC की धारा 384/419 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2008 की धारा 66-C और 67 के तहत दर्ज एफआईआर से उत्पन्न सभी कार्यवाहियों के रिकॉर्ड से याचिकाकर्ता का नाम हटा दें और इसे खोज परिणामों में भी प्रदर्शित न होने दें।

कोर्ट ने आगे दोनों न्यायालयों की रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता का नाम "ABCD" के रूप में प्रदर्शित करें।

याचिकाकर्ता को अन्य प्लेटफार्मों और सर्च इंजनों से अपना नाम छिपाने के लिए संपर्क करने का निर्देश देते हुए, अदालत ने कहा, "जब भी याचिकाकर्ता किसी भी सोशल मीडिया या सर्च इंजन से संपर्क करता है या आवेदन करता है, तो यह अपेक्षित है कि वे भी याचिकाकर्ता के 'गोपनीयता के अधिकार' और 'भुलाए जाने के अधिकार' का सम्मान करेंगे और न्यायालय कार्यवाही से संबंधित किसी भी अन्य सामग्री को रिकॉर्ड से हटा देंगे।"

कोर्ट BNSS की धारा 528 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें हाईकोर्ट की रजिस्ट्री/कंप्यूटर शाखा और जिला न्यायालय, गुरुग्राम को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि एफआईआर संख्या 100, दिनांक 10.04.2024 (जो IPC की धारा 384/419 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, (IT Act) 2008 की धारा 66-C और 67 के तहत दर्ज की गई थी) से संबंधित ई-कोर्ट पोर्टल से याचिकाकर्ता का नाम हटाया जाए।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता एक प्रतिष्ठित कॉर्पोरेट प्रोफेशनल हैं, जिनका भारत और अमेरिका में कुल 20 वर्षों का अनुभव है। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की है।

याचिकाकर्ता को इस एफआईआर में झूठा फंसाया गया था और विवादित राशि मात्र ₹3,000 थी, जिसे बाद में खारिज कर दिया गया।

यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता एक प्रतिष्ठित कॉर्पोरेट प्रोफेशनल हैं, और जीविका चलाने के लिए वे नौकरी के अवसर तलाश रहे हैं तथा अंतरराष्ट्रीय कंपनियों और फर्मों के साथ काम करने की संभावनाएं भी देख रहे हैं। हालांकि, ई-कोर्ट पोर्टल पर उनका नाम उपलब्ध होने के कारण, भारत और विदेश दोनों जगहों पर उनके लिए नौकरी प्राप्त करना असंभव हो रहा है।

सुनवाई के बाद, अदालत ने माना कि कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया गया था, लेकिन IPC की धारा 384/419 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की धारा 66-C और 67 के तहत सभी संबंधित कार्यवाहियों को हाईकोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया था।

जस्टिस शेखावत ने यह भी स्पष्ट किया कि एफआईआर से उत्पन्न कोई भी कार्यवाही किसी भी न्यायालय में लंबित नहीं है।

नतीजतन, कोर्ट ने याचिका को मंजूरी दी।


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